*श्रमिक (कुंडलिया)*

*श्रमिक (कुंडलिया)*
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घर से चलते हैं श्रमिक , सुबह बजे जब आठ
दिन-भर श्रम का पढ़ रहे , रोजाना ही पाठ
रोजाना ही पाठ , ईंट सिर पर हैं ढ़ोते
मिलता तब ईनाम , मूल्य पाकर खुश होते
कहते रवि कविराय ,सदा यह खाली कर से
लेकर चलते साथ , शुष्क दो रोटी घर से
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*कर =* हाथ
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*रचयिता : रवि प्रकाश*
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451