खामोशी : काश इसे भी पढ़ लेता....!
सफ़ेद चमड़ी और सफेद कुर्ते से
’शे’र’ : ब्रह्मणवाद पर / मुसाफ़िर बैठा
धूप निकले तो मुसाफिर को छांव की जरूरत होती है
अंजान बनते हैं वो यूँ जानबूझकर
ये जो मुहब्बत लुका छिपी की नहीं निभेगी तुम्हारी मुझसे।
Don't lose a guy that asks for nothing but loyalty, honesty,
इस्लामिक देश को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी देश के विश्वविद्या
शेर बेशक़ सुना रही हूँ मैं
ज्ञान के दाता तुम्हीं , तुमसे बुद्धि - विवेक ।
हर मोड़ पर कोई न कोई मिलता रहा है मुझे,
क्यों गम करू यार की तुम मुझे सही नही मानती।
अल्फ़ाज़ बदल गये है अंदाज बदल गये ।