शाश्वत और सनातन
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आप रोजमर्रा की जिंदगी,
जीते जीते,
हालात ऐसे हैं,
जैसे रोबोट
बिल्कुल यांत्रिक (mechanical)
.
ऐसे में मन मस्तिष्क के क्रियान्वयन,
क्रिया-शैली का अध्ययन आवश्यक है,
उदाहरण के तौर पर,
साइकिल चलाना,
मोटरसाइकिल चलाना,
फिर कार या भारी वाहन चलाने के सीखने,
जैसा ही है :-
जो साइकिल /मोटरसाइकिल /कार /भारी वाहन
बनाते हैं .।।
वे चलाना जानते हो, आवश्यक नहीं हैं,
जो चलाना जानते,
उनके लिए,
यह आवश्यक नहीं कि :- उन्हें बनाना आता हो,
.
जब वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था का भारत में जाल की बुनियाद रखी जा रही थी,
उस समय कल्पना बलवति थी,
बेईमानी मन में,
धोखे से राजपाट,
छीन कर,
सत्ता किसी नालायक को सौंपी जा रही थी,
उस समय, सेवक और स्त्री को वंचित कर,
शिक्षा और संपत्ति रखने के अधिकार इसलिए
छीन लिये गये,
क्योंकि ग्रंथ, वेद, पुराण, उपनिषद् इनके खिलाफत में थे, भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आंतरिक भावना, बेईमान और असमानता की परिचायक रही है,, राज पाट चाहे, त्रेता के राम का हो, या द्वापर के कृष्ण का रहा हो .।।
दमन शूद्र वर्ण का ही करने के लिए,,,
उन्हें शिक्षा और भोजन व्यवस्था से दूर रखकर,
उनके साथ जानवरों जैसा क्रूर आचरण की देन,
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पराकाष्ठा रही है,, इस आधार को बनाये रखना, इसे टूटने न देने का स्वार्थ ही सनातन और शाश्वत यानि अनवरत परंपरा का नाम है..
(महेन्द्र सिंह मनु)