Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Nov 2023 · 4 min read

शब्द-वीणा ( समीक्षा)

समीक्ष्य कृति: शब्द-वीणा ( कुंडलिया संग्रह)
कवयित्री: तारकेश्वरी ‘सुधि’
प्रकाशक: राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
प्रकाशन वर्ष: 2022 ( प्रथम संस्करण)
मूल्य- ₹150/-
भावों का इंद्रधनुष- शब्द-वीणा
कुंडलिया सदैव से ही कवियों का प्रिय छंद रहा है। इस छंद में अनेकानेक कवियों / कवयित्रियों ने अपनी सटीक भावाभिव्यक्ति की है। आज कुंडलिया में मात्र नीति ,न्याय और भक्ति की ही अभिव्यक्ति नहीं होती, अपितु इन सबके साथ-साथ समसामयिक विषयों को भी अपने अंदर समेटा है अर्थात इस छंद के अभिव्यक्ति की परिधि विस्तृत और व्यापक होती जा रही है। शब्द-वीणा तारकेश्वरी ‘सुधि’ की एक कुंडलिया कृति है। इसमें कवयित्री ने अपने 245 कुंडलिया छंदों को शामिल किया है। इसकी भूमिका लिखी है कुंडलिया छंद के सशक्त हस्ताक्षर आदरणीय त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी ने।
दुनिया की आधी आबादी यदि हताश-निराश होगी तो किसी भी समाज का कल्याण संभव नहीं है।लोगों की परवाह किए बिना नारी को आगे आना होगा और अपने सपनों को पूर्ण करने के लिए उद्यत होना होगा। सम्मान की प्राप्ति तभी संभव होती है जब हम जीवन में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ,अपनी पहचान बनाते हुए, समाज को सकारात्मक दिशा देने में सफल होते हैं।
आहत हो तेरा नहीं, हे नारी! सम्मान।
चूल्हे-चौके से अलग,यह दुनिया पहचान।।
यह दुनिया पहचान, लगेगी मुश्किल कुछ दिन।
लेकिन मन में ठान,कार्य सब होंगे मुमकिन।
पूरे कर निज ख्वाब, सभी इच्छा सुधि चाहत।
बन जाए पहचान, नहीं होगी तू आहत।। ( पृष्ठ-68 )
महिलाएँ केवल घर ही नहीं संभालतीं वरन परिवार की आवश्यकतानुसार जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से बाहर भी काम करती हैं।बाहर काम करते हुए उन्हें दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है- मातृत्व और श्रम-साधना साथ-साथ। ऐसे ही एक दृश्य बिम्ब की सटीक अभिव्यक्ति ‘सुधि’ जी ने अपने छंद में की है।
माता सिर पर लादकर, ईंट गार का भार।
बाँहों में बच्चा लिए, रही उसे पुचकार।
रही उसे पुचकार, धूप सर्दी सब सहती।
उर में ममता भाव,प्यार की नदियाँ बहती।
रोए सुधि संतान, हृदय विचलित हो जाता।
छोड़ सकल फिर काज,लगाती उर से माता।।( पृष्ठ-77)
अंतिम जन की पीड़ा को न केवल समझना आवश्यक है वरन उसको दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाने भी अनिवार्य हैं। सरकार और समाज द्वारा गरीबों की बात तो की जाती है परंतु आवश्यक कदम नहीं उठाए जाते। किसी भी समस्या का समाधान मात्र बातों से नहीं होता, धरातल पर कार्य करने की जरूरत होती है। जिम्मेदार लोग समस्या समाधान के नाम पर अंधे- बहरे और गूँगे हो जाते हैं।
आखिर व्यथा गरीब की, यहाँ समझता कौन।
किसे कहें कैसे कहें, अंध बधिर सब मौन।।
अंध बधिर सब मौन, नौकरी पास न इनके।
सह जाते फटकार, स्वप्न उड़ते ज्यों तिनके।
कहती है सुधि सत्य, हड़पने में सब शातिर।
समझ सकें जो पीर, कहाँ इंसां वे आखिर।। (पृष्ठ-42)
बच्चों के खेल सदा निराले होते हैं और देखने वाले को बरबस ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं। देखने वाला व्यक्ति कुछ समय के लिए ही सही ,अपने बचपन में भ्रमण करने लगता है। एक छोटी-सी बच्ची अपनी सखियों के साथ कौन-कौन से खेल खेलती है,इसका शब्द- चित्र कवयित्री के द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
छोटी-सी वह बालिका,खेल रही है खेल।
भाँति -भाँति की कल्पना,सत रंगों का मेल।।
सत रंगों का मेल, कभी मम्मी बनती है।
बने डाॅक्टर, नर्स, पुष्प सुंदर चुनती है।
कहती है ‘सुधि’ सत्य, बना छोटी सी रोटी।
भरकर सबका पेट, बालिका हँसती छोटी।।
‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का एक महत्वाकांक्षी मिशन है जिसकी अलख घर-घर में जगाने में वे सफल हुए हैं। समाज का प्रत्येक व्यक्ति आज न केवल स्वच्छता के महत्व को समझने लगा है वरन वह इस अभियान से जुड़ा हुआ भी है। कवयित्री भी अपने छंद में इस समसामयिक विषय को उठाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करती है।
भारत के घर स्वच्छ हों, गलियाँ कचरा मुक्त।
देश साफ सुंदर बने, कोशिश हो संयुक्त।।
कोशिश हो संयुक्त, असर तब ही छोड़ेगी।
चलकर थोड़ी दूर, अन्यथा दम तोड़ेगी।
कहती है ‘सुधि’ सत्य, रखो मन में यह हसरत।
रोगों से हो मुक्त, देश यह अपना भारत।। (पृष्ठ-24)
आम और खास सभी तरह के लोगों के लिए प्रकृति के मनोरम रूप सदैव आकर्षित करते रहे हैं। जनसामान्य जहाँ सुंदर प्राकृतिक रूप को दखकर आह्लादित हो उठता है, उसके होठों पर मुस्कराहट तैरने लगती है, वहीं कवि-हृदय मन में उठने वाले भावों को काव्य-रूप में परिणत कर देता है। इंद्रधनुष की छटा से युक्त ‘सुधि’ जी का एक छंद –
कुदरत ने बिखरा दिए,विविध भाँति के रंग।
थोड़ा सा जी लें सभी, इन्द्रधनुष के संग।।
इन्द्रधनुष के संग,प्रकृति से प्रेम करेंगे।
मधुर-मधुर संगीत, राग दिल में भर लेंगे।
कहती है ‘सुधि’ सत्य, बाँधता है अम्बुद खत।
रखना मनुज सहेज, कीमती है ये कुदरत।।
शब्द-वीणा के छंदों पर समग्रता में दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है कि कवयित्री ने जहाँ नीतिपरक और भक्तिभाव से संपृक्त छंदों की सर्जना करके समाज को सार्थक और सुन्दर संदेश देने का प्रयास किया है तो वहीं दूसरी ओर समाज की विसंगतियों और विद्रूपताओं को भी अपना विषय बनाकर कवि धर्म का निर्वहन किया है।
कवयित्री ने सहज-सरल भाषा में भावाभियक्ति कर आम पाठकों को कृति की ओर आकृष्ट करने का एक सफल प्रयास किया है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है, उसे पाण्डित्य-प्रदर्शन का साधन नहीं बनाया जाना चाहिए। कवयित्री ने हिंदी और अरबी-फारसी के आम जीवन में प्रचलित शब्दों का प्रयोग सटीकता के साथ किया है। वैसे ‘छंदबद्ध रचना में बहुभाषिक शब्दावली का भंडार कवि के रचना-कर्म को आसान बना देता है। अपनी भाषा के प्रति लगाव और सम्मान सदैव श्लाघ्य होता है परंतु किसी भाषा विशेष के शब्दों के प्रयोग के प्रति दुराग्रह उचित नहीं होता।’
कवयित्री ने कुंडलिया छंद के शिल्प का निर्वहन एक कुशल छंद शिल्पी की भाँति किया है। सभी छंद त्रुटिहीन एवं सटीक हैं।सुधि जी के छंदों की भाषा मुहावरेदार और अलंकारिक होने के साथ-साथ चित्रात्मकता से युक्त है।बिम्बात्मकता इनका एक विशिष्ट गुण है जो भावों को आत्मसात करने में सहायक सिद्ध होता है।
निश्चित रूप से इस ‘शब्द-वीणा’ की झंकार साहित्य जगत को सम्मोहित करेगी और अपना यथेष्ट स्थान प्राप्त करेगी। इस बहुमूल्य कृति रूपी मोती के शामिल होने से कुंडलिया कोश अवश्य समृद्ध होगा।
समीक्षक
डाॅ बिपिन पाण्डेय

2 Likes · 1 Comment · 135 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कविता तुम से
कविता तुम से
Awadhesh Singh
3313.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3313.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
हम ख़फ़ा हो
हम ख़फ़ा हो
Dr fauzia Naseem shad
सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
Subhash Singhai
"द्रौपदी का चीरहरण"
Ekta chitrangini
समय के साथ
समय के साथ
Davina Amar Thakral
रात अंजान है
रात अंजान है
Dr. Rajeev Jain
काव्य
काव्य
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
बैठाया था जब अपने आंचल में उसने।
बैठाया था जब अपने आंचल में उसने।
Phool gufran
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मुक्तक – शादी या बर्बादी
मुक्तक – शादी या बर्बादी
Sonam Puneet Dubey
छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
छाई रे घटा घनघोर,सखी री पावस में चहुंओर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
Sanjay ' शून्य'
सब की नकल की जा सकती है,
सब की नकल की जा सकती है,
Shubham Pandey (S P)
मेरी सोच मेरे तू l
मेरी सोच मेरे तू l
सेजल गोस्वामी
हालातों से युद्ध हो हुआ।
हालातों से युद्ध हो हुआ।
Kuldeep mishra (KD)
आँचल की मर्यादा🙏
आँचल की मर्यादा🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
एक इश्क में डूबी हुई लड़की कभी भी अपने आशिक दीवाने लड़के को
एक इश्क में डूबी हुई लड़की कभी भी अपने आशिक दीवाने लड़के को
Rj Anand Prajapati
बिन बोले सब बयान हो जाता है
बिन बोले सब बयान हो जाता है
रुचि शर्मा
दोहा त्रयी. . . . शमा -परवाना
दोहा त्रयी. . . . शमा -परवाना
sushil sarna
आंखो में है नींद पर सोया नही जाता
आंखो में है नींद पर सोया नही जाता
Ram Krishan Rastogi
14- वसुधैव कुटुम्ब की, गरिमा बढाइये
14- वसुधैव कुटुम्ब की, गरिमा बढाइये
Ajay Kumar Vimal
दो पंक्तियां
दो पंक्तियां
Vivek saswat Shukla
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
आगे पीछे का नहीं अगल बगल का
Paras Nath Jha
"सदा से"
Dr. Kishan tandon kranti
ये बेटा तेरा मर जाएगा
ये बेटा तेरा मर जाएगा
Basant Bhagawan Roy
अस्तित्व अंधेरों का, जो दिल को इतना भाया है।
अस्तित्व अंधेरों का, जो दिल को इतना भाया है।
Manisha Manjari
लड़की कभी एक लड़के से सच्चा प्यार नही कर सकती अल्फाज नही ये
लड़की कभी एक लड़के से सच्चा प्यार नही कर सकती अल्फाज नही ये
Rituraj shivem verma
हिसाब हुआ जब संपत्ति का मैंने अपने हिस्से में किताबें मांग ल
हिसाब हुआ जब संपत्ति का मैंने अपने हिस्से में किताबें मांग ल
Lokesh Sharma
जिस बाग में बैठा वहां पे तितलियां मिली
जिस बाग में बैठा वहां पे तितलियां मिली
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...