विषधर
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विषधर
जो हो ना नियंत्रित पंजे में
रखिए उन्हें शिकंजे में,
निज कोरे आदर्शों से
कभी, राष्ट्र नहीं चला करते
लोहे से लोहा कटता है
जिससे चलता विज्ञान, यान
लोहे से सजता चांदी, सोना
जो अलंकृत करता, नृप मुकुटों को
भू जोती जाती है लोहे से
जिससे उत्पन्न, होते अनाज
लोहे से बनते तीर, कमान
जो रखे सुरक्षित, वन चौवों से
लोहे से बनती सूई है
जो रक्षा करती मर्यादा की ।
लोहे से होती शल्य चिकित्सा
हरता जो विघ्न, विकारों को
कब-तक उदार, बन बैठोगे
कब-तक होगी उनकी पूजा
करिए उद्धार, द्रुत उनका
जो बन बैठे हैं, विषधर व्याल।।
~आनन्द मिश्र