प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।
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#विधा:- गीत
#दिनांक :- २८/०२/२०२४
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नभ में घोर बदरिया छाई, देख धूर्त लेते अँगड़ाई।
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।।
मान जिन्हें परमेश्वर पूजा,
लगे वहीं अब दूजा- दूजा।
अंध वासना का बन बैठा,
हर नारी लगती है चूजा।
बाज़ारू निष्ठा बन बैठी,
मोल लगा है आना पाई।
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।।
चलो देख अब दायें बायें,
ऊपर नीचे बहुत जरूरी।
घात लगाए धूर्त भेड़िए,
साध करेंगे वर्ना पूरी।
देख भालकर पग धरना है,
अग्र कूप है पीछे खाई।
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।।
समय नहीं यह राम सिया का,
कृष्ण राधिका नाम बचा है।
भ्रष्ट कुकर्मी भरे पड़े हैं,
नाम मात्र को धाम बचा है।
आज कटघरे खड़ी सुरसुरी,
जल सूखा, है कीचड़- काई।
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार