खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
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खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
ये कैसी परिस्थिति को मेरे समक्ष उपस्थित करवाया है।
चाह के भी ये निगाहें झुकी हुई हैं,
अभिलाषा के विरुद्ध जाके आप से फिरी पड़ी है।
अगर क्षमता रहती तो आपको मेरी नजरों में कैद न कर लेती,
बस आपको देख यू ही थम जाती,
बस एक बार मुझे सहला दो ,
मैं यू ही बहल जाऊँगी,
ऐसे ही मैं तुम्हारी हो जाऊँगी।