वतन के सपूत
वतन के सपूत
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वतन के राह में कुर्बान यहीं शबाब है।
कि तुमको बारंबार यार मेरे आदाब है।
सलामत है वतन तुमसे तुम्ही तो शान हो।
कभी हम बन सके तुम सा यही तो ख्वाब है।
वतन के नाम तुमने करदी अपनी जिंदगी।
नजर भर देख ले दुश्मन कहे शैलाब है।
तुम्हीं हो शानों शौकत मेरे हिन्दुस्तान के।
शत्रु देख तुझे कंपित कहता तेजाब है।
किया महफूज़ सबको तुम रहे वीराने में।
कि तुमने झेला हर मौसम समझ सुर्खाब है।
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✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार