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30 Jun 2019 · 1 min read

रिश्ते

रिश्ते मरने लगते हैं,
धीरे -धीरे
जब
अनकही कथनों को
कहा माने जाने लगता है।
नदी के निर्मल प्रवाह में
जब-
कैक्टस उगने लगता है
और धीरे -धीरे
रिश्तों की सांसें थमने लगती है।
कौन उगाता है ?
बेवज़ह, वेवक़्त यह कैक्टस,
रिश्तों की मेड़ पर।
और कौन तोड़ता है?
चुपके से मेड़ को,
क्या यह वही तो नही,
जो परछाई बनने का
स्वांग करता है, दम्भ भरता है
और उगाता है
जीवन की निर्मल भूमि पर
नित नई प्रजाति का
कैक्टस।
कहते हैं,
कैक्टस रिश्तों को कंटीला बनाता है
पर
इस अबोले वनस्पति का क्या दोष?
हाँ, सावधान,
जीवन को कैक्टस न बनने दें
रिश्तों को मरने न दें
देखें,
अमरवेल की तरह,
पनप तो नहीं रहा
आस-पास कोई
छद्म कैक्टस।

Language: Hindi
Tag: कविता
5 Likes · 1 Comment · 337 Views

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