Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Feb 2017 · 4 min read

रमेशराज के पर्यावरण-सुरक्षा सम्बन्धी बालगीत

।। खुशबू भरी कथाएँ पेड़ ।।
————————————–
रंग-विरंगे फूलों वाली
ले आयें कविताएँ पेड़।
गाओ-गाओ गीत वसंती
हम सबको बतलाएँ पेड़।

डाल-डाल पर कूके कोयल
सबका मन हरषाती है
पात-पात पर मधुर फाग की
रचने लगे ऋचाएँ पेड़।

पीले वसन ओढ़कर बोले
सरसों-दल यूँ हौले-से
हर वसंत में यूँ ही लाते
खूशबू-भरी कथाएँ पेड़।

मत कर देना मार कुल्हाड़ी
इनका तन कोई घायल
करें सदा ही जंगल-जंगल
मस्ती-भरी सभाएँ पेड़।
+रमेशराज

।। सरसों के फूल ।।
आयी-आयी ऋतु वसंत की
बोल रहे सरसों के फूल।
पीत-वसन ओढ़े मस्ती में
डोले रहे सरसों के फूल।

चाहे जिधर निकलकर जाओ
छटा निराली खेतों की
नित्य हवा में भीनी खुशबू
घोल रहे सरसों के फूल।

इनकी प्यारी-प्यारी बातें
बड़े प्यार से सुनती हैं
तितली रानी के आगे मन
खोल रहे सरसों के फूल।

लाओ झांझ-मजीरे लाओ
इनको आज बजाओ रे
हम गाते हैं गीत वसंती
बोल रहे सरसों के फूल।
+रमेशराज

|| पेड़ आदमी से बोले ||
——————————
हम फल-फूल दिया करते हैं
खूशबू से उपवन भरते हैं
खाद मिले सबके खेतों को
इस कारण पत्ते झरते हैं,
तू पाता जब हमसे औषधि
लिये कुल्हाड़ी क्यों डोले
पेड़ आदमी से बोले।

कल तू बेहद पछतायेगा
हम को काट न कुछ पायेगा
हम बिन जब वर्षा कम होगी
भू पर मरुथल बढ़ जायेगा
फिर न मिटेगा रे जल-संकट
तू चाहे जितना रोले
पेड़ आदमी से बोले।

कीमत कुछ तो आँक हमारी
हमें चीरती है यदि आरी
कौन प्रदूषण तब रोकेगा ?
प्राणवायु खत्म हो सारी
क्या कर डाला, कल सोचेगा
अब चाहे हमको खो ले
पेड़ आदमी से बोले।
+रमेशराज

।। पेड़ कुल्हाड़ी से बोले ।।
———————————
हमने फूल खिलाये प्यारे
मोहक होते दृश्य हमारे।
हम पथिकों को देते छाया
हमसे महँकें उपवन सारे।
फिर क्यों तू हमको काटे री!
फल देंगे, ले आ झोले
पेड़ कुल्हाड़ी से बोले।

हम पर पक्षी करें वसेरा
हमसे प्राणवायु का डेरा,
नफरत करना कभी न सीखे
हमने सब पर प्यार उकेरा।
नफरत के फिर बोल किसलिए
दाग रही है तू गोले
पेड़ कुल्हाड़ी से बोले।

चाहे तो कुछ ईंधन ले जा
औषधियाँ या चन्दन ले जा
हम दे देंगे जो माँगेगी
फूल-पत्तियों का धन ले जा
काट न जड़ से किंतु हमें तू
हम तो हैं बिलकुल भोले
पेड़ कुल्हाड़ी से बोले।

इतना सुन रो पड़ी कुल्हाड़ी
बोली-मानव बड़ा अनाड़ी,
व्यर्थ तुम्हें मुझसे कटवाता
तुमसे शोभित खेत-पहाड़ी।
अरी कुल्हाड़ी यू मत रो री!
अरी बहन तू चुप हो ले
पेड़ कुल्हाड़ी से बोले।
+रमेशराज

|| पेड़ लगाओ ||
——————————
हरे-भरे यदि जंगल हों तो
आसमान पर बादल होंगे।

यदि जंगल के पेड़ कटेंगे
भूजल-स्तर और घटेंगे।

अगर अधिक होता वन-दोहन
हो जायेगा मरुमय जीवन।

नम जलवायु खुश्क हो सारी
यदि पेड़ों पर चले कुल्हाड़ी।

पेड़ो से विकसित जन-जीवन
पेड़ दिया करते आॅक्सीजन।

प्राण-वायु के पेड़ खजाने
मत आना तुम इन्हें गिराने।

हरे-भरे वन से जीवन है
फूल दवाएँ जल ईंधन है।

अगर कटे वन, जल का संकट
अन्न बनेगा कल का संकट।

आओ सोनू-मोनू आओ
पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
+रमेशराज

|| हम है पेड़ न आरी लाना ||
———————————–
फूलों की कविताएँ रचकर
खुशबू-भरी कथाएँ रचकर,
हमने सबका मन हर पाया
रंगों-भरी ऋचाएँ रचकर।
हमसे सीखो तुम मुस्काना
हम हैं पेड़, न आरी लाना।|

मेघों का यदि तुम जल चाहो
मीठे-मीठे जो फल चाहो,
हमें न चीरो-हमें न काटो
हरे-भरे यदि जंगल चाहो।
तपती धूप, छाँव तुम पाना
साथ न बन्धु कुल्हाड़ी लाना।|

औषधियों के हैं कुबेर हम
तुमको स्वस्थ रखेंगे हरदम,
सीखे नहीं हानि पहुँचाना
हम बबूल नीम या शीशम |
हमसे मत तुम बैर निभाना
करते विनती, हमें बचाना।|
+रमेशराज

।। हमें न चीरो-हमें न काटो।।
हम सबको जीवन देते हैं
महँक-भरा चन्दन देते हैं
वर्षा में सहयोग हमारा
औषधियाँ ईंधन देते हैं
हम करते हैं बातें प्यारी
हमसे दूर रखो तुम आरी।

हमसे है साँसों की सरगम
स्वच्छ वायु हम देते हरदम,
फूल और फल भी पाते हो
काँप रहे पर तुम्हें देख हम
पादप वृक्ष वल्लरी झाड़ी
क्यों ले आये बन्धु कुल्हाड़ी।

बाढ़ रोकना काम हमारा
जन-कल्याण हमारा नारा
दूर प्रदूषण को करते हैं
हर पक्षी का हमीं सहारा
हमको मत टुकड़ों में बाँटो
हमें न चीरो-हमें न काटो।
+रमेशराज

।। होते है कविताएँ पेड़ ।।
——————————-
यहाँ सदा से पूजे जाते
बने देव प्रतिमाएँ पेड़।
बस्ती-बस्ती स्वच्छ वायु की
रचते रोज ऋचाएँ पेड़।

सुन्दर-सुन्दर फूलों वाली
लिखें रोज हँसिकाएँ पेड़
नयी-नयी उसमें खुशबू की
भर देते उपमाएँ पेड़।

सूरज जब गर्मी फैलाए
धूप बने जब भी अंगारा
पथिकों से ऐसे में कहते
शीतल छाँव-कथाएँ पेड़।

न्यौछावर अपना सब कुछ ही
हँस-हँसके कर जाएँ पेड़
लकड़ी ईंधन चारा भोजन
दें फल-फूल दवाएँ पेड़।

इनसे आरी और कुल्हाड़ी
भइया रे तुम रखना दूर
जनजीवन की-सबके मन की
होते हैं कविताएँ पेड़।
+रमेशराज

|| मत काटो वन, मत काटो वन ||
—————————————-
हमसे फूल और फल ले लो
औषधियों सँग संदल ले लो।
जड़ से किन्तु हमें मत काटो
चाहे जितना ईंधन ले लो।

यूँ ही चलती रही कुल्हाड़ी
तो कल होगी नग्न पहाड़ी।
सोचो जब वर्षा कम होगी
बिन जल के भू बेदम होगी।

सारे वन जब कट जायेंगे
भू पर मरुथल लहरायेंगे
फिर ये अन्न उगेगा कैसे
सबका पेट भरेगा कैसे?

भू पर फसल नहीं यदि होगी
दिखें न सेब, टमाटर, गोभी
अतः पेड़ हम करें निवेदन
मत काटो वन, मत काटो वन।
+रमेशराज

।। पेड़ ।।
—————————–
मीठे फल दे जाते पेड़
जब भी फूल खिलाते पेड़।

आता जब वसंत का मौसम
उत्सव खूब मनाते पेड़।

जब बरसे रिमझिम बादल तो
और अधिक हरियाते पेड़।

सबके सर पर कड़ी धूप में
छाते-से तन जाते पेड़।

बच्चे लटका करते इन पर
झूला खूब झुलाते पेड़ा

इनसा कोई दिखे न दाता
मीठे फल दे जाते पेड़।

करवाते हैं हम ही वर्षा
यह सबको समझाते पेड़।

पाओ इनसे औषधि- चन्दन
ईंधन खूब लुटाते पेड़।

प्राणवायु के हम दाता हैं
यह संदेश सुनाते पेड़।

लिये कुल्हाड़ी हमें न काटो
यही गुहार लगाते पेड़।
-रमेशराज
————————————————————
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001

Language: Hindi
376 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*बादल चाहे जितना बरसो, लेकिन बाढ़ न आए (गीत)*
*बादल चाहे जितना बरसो, लेकिन बाढ़ न आए (गीत)*
Ravi Prakash
तुझसे लिपटी बेड़ियां
तुझसे लिपटी बेड़ियां
Sonam Puneet Dubey
कोरोना संक्रमण
कोरोना संक्रमण
Dr. Pradeep Kumar Sharma
हे ! भाग्य विधाता ,जग के रखवारे ।
हे ! भाग्य विधाता ,जग के रखवारे ।
Buddha Prakash
दूर जाकर क्यों बना लीं दूरियां।
दूर जाकर क्यों बना लीं दूरियां।
सत्य कुमार प्रेमी
🧟☠️अमावस की रात ☠️🧟
🧟☠️अमावस की रात ☠️🧟
SPK Sachin Lodhi
जी रहे है तिरे खयालों में
जी रहे है तिरे खयालों में
Rashmi Ranjan
जब तक प्रश्न को तुम ठीक से समझ नहीं पाओगे तब तक तुम्हारी बुद
जब तक प्रश्न को तुम ठीक से समझ नहीं पाओगे तब तक तुम्हारी बुद
Rj Anand Prajapati
3501.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3501.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
"अहसास मरता नहीं"
Dr. Kishan tandon kranti
कॉटेज हाउस
कॉटेज हाउस
Otteri Selvakumar
बाबा भीम आये हैं
बाबा भीम आये हैं
gurudeenverma198
जिंदगी तेरे हंसी रंग
जिंदगी तेरे हंसी रंग
Harminder Kaur
दूर अब न रहो पास आया करो,
दूर अब न रहो पास आया करो,
Vindhya Prakash Mishra
मैं अपने सारे फ्रेंड्स सर्कल से कहना चाहूँगी...,
मैं अपने सारे फ्रेंड्स सर्कल से कहना चाहूँगी...,
Priya princess panwar
अलबेला अब्र
अलबेला अब्र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
औरत बुद्ध नहीं हो सकती
औरत बुद्ध नहीं हो सकती
Surinder blackpen
दोहे- साँप
दोहे- साँप
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मौसम और कुदरत बर्फ के ढके पहाड़ हैं।
मौसम और कुदरत बर्फ के ढके पहाड़ हैं।
Neeraj Agarwal
इबादत आपकी
इबादत आपकी
Dr fauzia Naseem shad
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मुद्दतों बाद मिलते पैर लड़खड़ाए थे,
मुद्दतों बाद मिलते पैर लड़खड़ाए थे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ग़म बहुत है दिल में मगर खुलासा नहीं होने देता हूंI
ग़म बहुत है दिल में मगर खुलासा नहीं होने देता हूंI
शिव प्रताप लोधी
विचारिए क्या चाहते है आप?
विचारिए क्या चाहते है आप?
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
🌹मेरी इश्क सल्तनत 🌹
🌹मेरी इश्क सल्तनत 🌹
साहित्य गौरव
■ कब तक, क्या-क्या बदलोगे...?
■ कब तक, क्या-क्या बदलोगे...?
*प्रणय प्रभात*
रंजिश हीं अब दिल में रखिए
रंजिश हीं अब दिल में रखिए
Shweta Soni
जो व्यक्ति  रथयात्रा में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और
जो व्यक्ति रथयात्रा में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और
Shashi kala vyas
ग़ज़ल
ग़ज़ल
rekha mohan
मैं
मैं
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
Loading...