मोबाइल फोन
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मोबाइल फोन
कभी घंटो लगाते थे जहां , कापी किताबों में ।
गणित में हम उलझ करके, गिने जाते नवाबों में।
हमें गूगल पढ़ाकर आज दुनिया भर घुमाता है ।
मगर माता-पिता हैं व्यस्त, बचपन के हिसाबों में।
यहां माता-पिता बच्चों को अपना फोन देते हैं ।
यहां मुस्कान सेल्फी के लिए ही फोन बनते हैं ।
कहीं गेमिंग, कहीं लर्निंग , बचे अब खेल बच्चों के ।
हंसाने खिलखिलाने के लिए भी फोन होते हैं ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम