मैं परेशान हूँ
मैं परेशान हूँ
मैं परेशान हूँ इस मुल्क की सियासत से
लाभ जिनको मिलना है उनको मिलता नहीं।।
महलो बाले झोपढी बना रहे,
झोपढी बाले तरसे आशियाने को
मैं परेशान हूं इस मुल्क की सियासत से।।
सियासत जख्म बांट रही है सड़कों पर
लोग तरस रहे हैं दाने दाने को।।
मैं परेशान हूँ इस मुल्क की सियासत से।।
कोई रहनुमा बनके लूट रहा है खजानों को
और जनता तरस रहीं हैं अपना हक पाने को।।
मैं परेशान हूँ इस मुल्क की सियासत से……..
अखि….. अखिलेश मेहरा