मेरे हर सिम्त जो ग़म….
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मेरे हर सिम्त जो ग़म का तूफ़ान है,
ये किसी की मुहब्बत का एहसान है।।
अब सियासत की मंडी में चारों तरफ़,
बिक रहा नफ़रतों का ही सामान है।।
नाम रख लो कोई, फ़र्क़ पड़ता है क्या?
एक मालिक ही सबका निगहबान है।।
देखकर लग रहा आज के हाल को,
खो गयी आदमीयत की पहचान है।।
एक अरसा हुआ उनको देखे हुए,
जिन पे अब तक फ़िदा ये मेरी जान है।।
मुश्किलों का है पहरा क़दम-दर-क़दम,
ज़िन्दगी अब कहाँ इतनी आसान है।।
उनका इतना करम मुझ पे कम तो नहीं,
“अश्क”से बन गयी मेरी पहचान है।।
© अशोक कुमार अश्क चिरैयाकोटी
दि०:01/05/2022