मेरे जीवन का बस एक ही मूल मंत्र रहा है जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। उससे अधिक

मेरे जीवन का बस एक ही मूल मंत्र रहा है जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। उससे अधिक न मांगता न चाहिये ।।
लेकिन फिर भी लोग चैन से जीने कहाँ देते हैं उनका ध्यान हमेशा अपने सुख से ज्यादा दूसरे के सुख पर ।
अर्थात इसकी क़मीज़ मेरी क़मीज़ से ज्यादा सफ़ेद क्यूँ ?