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21 Jan 2017 · 1 min read

मुझसे रु-ब-रु तो हो

आए हो मुझसे मिलने तुम मुद्दतों के बाद
दे सकते क्या वक़्त का सौग़ात भी नहीं/

आते ही तुम क्यूँ कह रहे जाने को तो ही
अभी तो हुई है बात की शुरुआत भी नहीं/

थोड़ी देर पास ठहर मुझसे रु-ब-रु तो हो
अभी तो हुई है पूरी ही मुलाक़ात भी नहीं/

बैठे हो मेरे सामने मगर ख़ुद से उलझे हो
करते हो तुम क्यूँ कोई सवालात भी नहीं/

आकर मेरे क़रीब तुम फिर दूर जाते हो
समझते हो तुम क्यूँ मेरी जज़्बात भी नहीं/

छोड़ा है जबसे तूने मुझे बिखरा सा ही हूँ
क्या तुम देख रहे हो मेरे हालात भी नहीं/

रूह में समा मेरे ही क्यूँ इतना दूर हो गए
रखते हो अब तो कोई ताल्लुक़ात भी नहीं/

थम जाते लम्हात तो इस इश्क़ के मर्ज़ में
कटती तो अब मेरी ग़म-ए-रात भी नहीं/

तपता हूँ दिन रात ही विरहा की आँच में
आती है अब तो क्यूँ ये बरसात भी नहीं/

चलता नहीं किसी का दिल पर कोई ज़ोर
रोक सकता तो इश्क़ को ऐहतियात भी नहीं/

अब तो इस उलझन से ही कैसे बचें अजय
बचा सकता अब तो कोई करामात भी नहीं/

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