Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Aug 2023 · 5 min read

मित्रता दिवस पर विशेष

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

आत्मबोध। रिश्तों में बहुत नाजुक रिश्ता है दोस्ती का मित्रता का। दोस्ती का ही बिगड़ा रूप दुश्मनी है। दोस्ती दुश्मनी में बदल सकती है। और मित्रता मतलब से ही चल सकती है। ये दोनो रिश्ते बहुत क्षणिक होते है। क्षणिक इतने की आप भूल जाते है सफर में की कब कौन आया और गया? याद बस वही रहता है, जो आपके समतुल्य होता है। इसलिए मित्र या दोस्त नही सखा होना चाहिए, जो आपको अपने साथ लेकर चले। आपको अपने समतुल्य बनाए।
मित्रता के लिए कृष्ण सुदामा का उद्धरण बार बार आता है। मगर मुझे इसमें मित्रता का कोई भाव नहीं दिखता। मित्रता होती तो सुदामा कभी इतने दीनहीन न होते की खाने को भी दुर्लभ हो जाए। सुदामा कृष्ण के बैचमेट थे। अर्थात दोनो की शिक्षा एक ही संदीपनी मुनि के आश्रम में हुई थी। संदीपनी मुनि का स्कूल उस समय सबसे प्रतिष्ठित स्कूल था। सामान्य जन उनके आश्रम में शिक्षा न पा सकता था। ऊंचे कुल के लड़के या राजकुमार ही उनकी आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर सकते थे। सुदामा का संदीपनी की आश्रम में शिक्षा पाना बताता है की सुदामा ऊंचे कुल खानदान या किसी प्रतिष्ठित सम्मानित पिता के पुत्र थे। जो अपने पिता की बनाई धन संपत्ति प्रतिष्ठा को रख न सके। और धीरे धीरे दरिद्रता को प्राप्त हुए। बहुत अंत समय में जब दुख बर्दाश्त नही हुआ, तो सुदामा की पत्नी ने उनको कृष्ण के पास भेजा। सुदामा कृष्ण को याद आ गए। याद भी क्यों न आते। क्लास के ओ मित्र जरूर याद आ जाते है, जो कुछ अलग तरह के होते है। अपने विद्यार्थी जीवन में सुदामा अलग तरह के ही थे। स्पष्ट शब्दों में छल कपट बेईमानी से भरपूर। कथा आती है की मुनि माता के दिए भोजन आदि को अपने अन्य मित्रो से छुपाकर खा जाते थे। इसके इतर भी अन्य कमियां सुदामा में होंगी। जो उनकी दरिद्रता का कारण बनी। वरना संदीपनी मुनि के आश्रम से पढ़ने के बाद अपना कर्म पांडित्य भी न करा सकते थे।
संदीपनी मुनि के आश्रम में पढने के बाद कृष्ण के साथ सुदामा उनके जीवन में मदद मांगने के समय आते है। बीच में कही इन दोनो का कोई जिक्र नहीं। सुदामा कृष्ण के मित्र होते, तो कृष्ण उनको अपने साथ दरबार में रखते किसी न किसी रूप में। मगर रखे नही। बहुत अंत में सुदामा कृष्ण के पास गए द्वारिका। कृष्ण को परिचय दिया, कृष्ण ने पहचान लिया। यह बहुत आश्चर्य की बात नही लगती मुझे। क्या आपके पास आपका कोई बैचमेट आए, तो आप उसे नही पहचान सकते। आप उसकी हेल्प नही कर सकते। अगर आप नही पहचान सकते, सफल हो जाने के बाद, तो मित्र शब्द आपके लिए ही है अर्थात मतलबी। तो यह मित्रता दिवस आपके लिए ही है। यह अलग बात है की आजकल इसी जैसे भाव संबंध की अधिकता है। सफल हो जाने के बाद कौन अपने बैचमेट, एजमेट को याद रखता है। जो आपके साथ आ जाता है, अब ओ आपका नया मित्र हो जाता है। नए संबंधों में व्यक्ति इतना घुलमिल जाता है। नए सपनो को पूरा करने में इतना व्यस्त हो जाता है की स्मृति से बाहर हो जाता है मित्र और उसके साथ बिताए दिन रात।
सुदामा से परिचय, दुःख -सुख, हाल -चाल, बातचीत होने के बाद भी कृष्ण ने सुदामा को काम देने की बजाय धन देकर विदा करना उचित समझा। यह क्षणिक मदद है। यह मदद एक याचक का राजा जैसा है। मित्र जैसा नही। मित्र जैसा होता तो कृष्ण सुदामा को पुरोहित जैसा पद दे देते की सुदामा खुद ही अपनी आर्थिक समस्या का समाधान कर ले। कृष्ण ने यही किया भी। समस्या, संकट का समाधान पीड़ित व्यक्ति को आत्मबल देकर उसी से करवाया। मगर यहां सुदामा को धन देकर विदा कर दिया। फिर सुदामा का प्रकरण कृष्ण के साथ कभी नही आया। दिया हुआ धन, संचित धन का नाश सत्य है और कमाते हुए धन का चलते रहना सत्य है।
मैं अपने जीवन में दो सत्य घटनाओं को देखा हु। जो कृष्ण सुदामा की दोस्ती से भी मुझे मजबूत लगती है। मेरे पड़ोस में रहने वाले एक चाचा जी अपने बचपन के दोस्त की आर्थिक समस्या के समाधान के लिए अपने जी पी एफ का सारा पैसा ही निकाल कर दे दिए। उधार या मदद के रूप में नही। मित्रता के नैतिक कर्तव्य में। अपने परिवार तक को नहीं बताए। ना कभी कही किसी से इसका जिक्र किए। आज के इस भौतिक और मतलबी दुनिया में कोई ऐसा शायद ही कर सके। खासकर तब, जब रिटायर होने के बाद जी पी एफ का पैसा ही उसका थाती होता है। चाचा जी अपने मित्र को मित्र नही हमेशा सखा कहते थे। दूसरी, यूनिवर्सिटी में मुझे पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर सर के पास उनके बचपन का दोस्त आया। जो किसी कारण वश अपनी पढ़ाई पूरी नही कर सके। सर चाहते तो पैसे आदि देकर उसे चलता कर देते। शायद जिसके लिए ओ आया था। मगर सर ने उसको अपने यहां रखा। कंप्यूटर और टाइप करवा कर यूनिवर्सिटी में जॉब दिलवा दी। जिससे उसकी आर्थिक समस्या हमेशा के लिए खत्म हो गई। जब हम लोग पूछते थे की सर ये कौन है, तो सर कहते थे हमारे बचपन का सखा है।
कृष्ण भी ऐसा कर सके थे।मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। कोई कारण रहा होगा। मगर ऐसा करने के लिए कोई कारण रहा होगा तो यह भाव कृष्ण का सुदामा से मित्रता का नही है।
मित्रता के संबंध में मुझे कृष्ण और सुदामा का चित्रण जमता नही है। कृष्ण अर्जुन का चित्रण सटीक हो सकता है की कृष्ण अर्जुन के साथ साथ जीवन भर चले। अर्जुन का हाथ पकड़ कर अपने समतुल्य खड़ा किया। दुर्योधन भी इस संबंध में कृष्ण की तरह मुझे जान पड़ता है, जो अपने राज्य का कुछ भाग कर्ण को देकर राजा बनाकर अपने समतुल्य लाकर उसे अपना मित्र बनाता है। जो जीवनभर चलता है। भले ही इसमें दुर्योधन का जो प्रयोजन रहा हो। कृष्ण अर्जुन को हर जगह सखा ही कहते है। सखा अर्थात साथी, दुःख सुख का साथी, हर परिस्थितियों में साथ खड़ा रहने वाला हिमालय की तरह का अडिग साथी। जो मित्र को पिछड़ने पर उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ लाए। फिसलने पर रुक कर हाथ देकर उठाए और दुबारा अपने पैर पर दौड़ने का आत्म बल दे। मगर सोचिए क्या आप अपने साथी के साथ ऐसे भाव में है। शायद हां शायद ना। मगर जो भी हो सोचिएगा।
” मतलब से संसार है
मतलब से ही प्यार है
मतलब से ही बीबी बच्चें
मतलब से ही यार है ”

फिलहाल मतलब की इस दुनियां में मित्रता दिवस की मेरे तरफ से भी बहुत बहुत बधाई।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश

282 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अंदाज़े बयाँ
अंदाज़े बयाँ
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फूल खिलते जा रहे हैं हो गयी है भोर।
फूल खिलते जा रहे हैं हो गयी है भोर।
surenderpal vaidya
मेरी फितरत
मेरी फितरत
Ram Krishan Rastogi
"बदल रही है औरत"
Dr. Kishan tandon kranti
होना जरूरी होता है हर रिश्ते में विश्वास का
होना जरूरी होता है हर रिश्ते में विश्वास का
Mangilal 713
एक मशाल जलाओ तो यारों,
एक मशाल जलाओ तो यारों,
नेताम आर सी
#लघु_कविता-
#लघु_कविता-
*प्रणय प्रभात*
शिव शंभू भोला भंडारी !
शिव शंभू भोला भंडारी !
Bodhisatva kastooriya
जरूरत से ज्यादा
जरूरत से ज्यादा
Ragini Kumari
कितनी मासूम
कितनी मासूम
हिमांशु Kulshrestha
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
पूर्वार्थ
वर दो हमें हे शारदा, हो  सर्वदा  शुभ  भावना    (सरस्वती वंदन
वर दो हमें हे शारदा, हो सर्वदा शुभ भावना (सरस्वती वंदन
Ravi Prakash
बेवजह ख़्वाहिशों की इत्तिला मे गुज़र जाएगी,
बेवजह ख़्वाहिशों की इत्तिला मे गुज़र जाएगी,
शेखर सिंह
जीवन पथ पर सब का अधिकार
जीवन पथ पर सब का अधिकार
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
*खुशियों की सौगात*
*खुशियों की सौगात*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
#शीर्षक-प्यार का शक्ल
#शीर्षक-प्यार का शक्ल
Pratibha Pandey
बात सीधी थी
बात सीधी थी
Dheerja Sharma
क्या बुरा है जिन्दगी में,चल तो रही हैं ।
क्या बुरा है जिन्दगी में,चल तो रही हैं ।
Ashwini sharma
धिक्कार
धिक्कार
Shekhar Chandra Mitra
2613.पूर्णिका
2613.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
जिम्मेदारियाॅं
जिम्मेदारियाॅं
Paras Nath Jha
जो जिस चीज़ को तरसा है,
जो जिस चीज़ को तरसा है,
Pramila sultan
💃युवती💃
💃युवती💃
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
छोड़कर साथ हमसफ़र का,
छोड़कर साथ हमसफ़र का,
Gouri tiwari
उस दर पे कदम मत रखना
उस दर पे कदम मत रखना
gurudeenverma198
सब कुछ खत्म नहीं होता
सब कुछ खत्म नहीं होता
Dr. Rajeev Jain
फ्रेम  .....
फ्रेम .....
sushil sarna
आस्था स्वयं के विनाश का कारण होती है
आस्था स्वयं के विनाश का कारण होती है
प्रेमदास वसु सुरेखा
योगा डे सेलिब्रेशन
योगा डे सेलिब्रेशन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मैं मधुर भाषा हिन्दी
मैं मधुर भाषा हिन्दी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
Loading...