मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
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मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
जिसका जख्म अब नासूर बन गया।
अश्क ही अश्क रह गए अब जिंदगी में,
खुशियों और सुकून का दौर काफूर हो गया ।
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
जिसका जख्म अब नासूर बन गया।
अश्क ही अश्क रह गए अब जिंदगी में,
खुशियों और सुकून का दौर काफूर हो गया ।