माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/c4a9e05edb465b62bed4ba33c0c8e518_e528163942ae6ddb81696a449db71afa_600.jpg)
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
एक समय कौड़ी के बरावर, एक समय बहुमूल्य होत
स्वर्ण हिरन चाहिए था माँ सीता को, श्रीराम को भेजा वन में
जब स्वर्ण लंका मिल रही माता को, फिर भी दुखी अशोक वन में
रही सता बेदना श्री राम की, मन ही मन माँ सीता रोती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
था अनुकूल समय जब रावण का, नव गृह बंदी बना लिए
हो गए गुलाम सभी गृह, कालचक्र पाटी से बांध दिए
पर रोक सके ना कालचक्र को, नास कुटुंब का करा दिए
कर कर याद स्नेहीजनो की, नार मंदोदरी रोती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
था समय साथ जब पार्थ के, कुरुक्षेत्र को फतह किया
भीष्म, द्रौण और कर्ण को मारा, हस्तिनापुर का राज्य लिया
बही अर्जुन बही गाण्डीव,काल ने अर्जुन को मजबूर किया
बचा सके न गोपियों को भीलों से, जंगल बीच गोपियाँ रोती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
एक समय कौड़ी के बरावर, एक समय बहुमूल्य होती