मानता हूँ हम लड़े थे कभी
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मानता हूँ हम लड़े थे कभी,दुश्मन तो हमको कहो नहीं।
आया भी करो मिलने तुम, नफरत हमसे यूं करो नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी——————–।।
समझता हूँ तुमको वही, कल जो तुम्हें समझता था।
कल भी तुम हमारे थे, दिल तुमसे खफ़ा होगा नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी——————–।।
मानता हूँ तुमको फुरसत नहीं, होगी कोई इसकी वजह।
अगर निकलूँ तेरी राह से मैं, तुम खामोश रहियेगा नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी———————।।
मैं चाहता हूँ कि यह नाखुशी की चादर, अब तुम हटा दें।
उदास नजर आऊंगा मैं लेकिन, दिल उदास होगा नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी——————-।।
जलाये रखता हूँ मैं चिराग, जिसमें देखता हूँ तेरा चेहरा।
खुशबू वही है चमन में, गुलशन बेरौनक मिलेगा नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी———————।।
आवो तुम हमसे मिलने, खिदमत वही होगी तुम्हारी।
चलते रहते हैं गिल-शिकवें, मिलन कभी बन्द होगा नहीं।।
मानता हूँ हम लड़े थे कभी———————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)