मरा जा रहा हूँ
मरा जा रहा हूँ
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प्रिय मुझसे तेरा यूं मुंह का फुलाना,
नखरे दिखाना यूं रूठ के सो जाना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
न हँसना तनिक भी न सजना सवरना,
न आँखें दिखाना न लड़ना झगड़ना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
ओ तिरछी नजर से न मुझको रिझाना,
न कसमों के ढाल को चलाना फसाना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
ओ उंगली के पोरों पर हमको नचाना,
न पीहर के डर से हमें वो डराना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
ना गहनें न साड़ी न लहंगा को कहना,
यूं गुमसुम हमेशा मेरे संग रहना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
तेरा हक से मुझपे वो चिखना चिल्लाना,
ना कॉफी पिलाना, न गले से लगाना,
गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है।
न पिक्चर को जाना,न शापिंग ही जाना,
सनम अब बता तुझको कैसे मनाना?
मरा जा रहा हूँ , मरा जा रहा हूँ,
यूं हमसे न रूठो , मरा जा रहा हूँ।
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✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल ” सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण (बिहार)