मन मंथन पर सुन सखे,जोर चले कब कोय
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मन मंथन पर सुन सखे,जोर चले कब कोय
इस मन के आकाश का, छोर न कोई होय
छोर न कोई होय, उड़ाने भरता रहता
हर पल नदी समान, सरल पानी सा बहता
कहे ‘अर्चना’ बात, गूढ़ करता है चिंतन
करता आविष्कार, विचारों का मन मंथन
डॉ अर्चना गुप्ता
28.02.2024