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19 Mar 2024 · 1 min read

बे-असर

खाये हैं हमने खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह
बस अब तो सब बे-असर सा लगता है

आजकल कुछ खिंचे खिंचे से रहते हैं
उनके लहजे में दुश्मन का असर लगता है

घर जलाने में माहताब-ए-फलक भी था शरीक,
अब हमें चांदनी रातों से भी डर लगता है

ता-उम्र का वादा, उम्र-ए-मुख़्तसर का साथ,
हर्फ़-ए-दिल अब ज़हराबा-ए-पैकर लगता है

क़त्ल-ए-क़ासिद देखा जब हमने रू-ब-रू,
हर शख़्स के खंजर-दर-आसतीं हमें लगता है

थे ज़ुल्फ़-ए-खूबां की नर्म छाँव में कभी ‘सागर’
अपना साया भी अब ग़ैर मोअतबर लगता है

खलिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह – bruises from many arrows
माहताब-ए-फलक – moon of sky
शरीक – involved
ता-उम्र – life time
उम्र-ए-मुख़्तसर – short age
हर्फ़-ए-दिल – word of heart
ज़हराबा-ए-पैकर – poisonous form
क़त्ल-ए-क़ासिद – murder of messenger
ख़ंजर-दर-आसतीं – dagger in sleeve
ज़ुल्फ़-ए-खूबां – tresses of beloved
ग़ैर मोअतबर – unreliable

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