* बेटियां *
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** मुक्तक **
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गुनगुनाती हैं विजय की पंक्तियां।
छू रही नभ पार करती आंधियां।
ज्ञान के विज्ञान के हर क्षेत्र में।
कम नहीं होती किसी से बेटियां।
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मुश्किलों से पार पाती बेटियां।
नील नभ को भी झुकाती बेटियां।
दूरियां खुद ही सिमट जाती सहज।
पथ कठिन जब पग बढ़ाती बेटियां।
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अब कहीं रुकती नहीं हैं बेटियां।
और झुक सकती नहीं हैं बेटियां।
छूट जाता वक्त भी पीछे स्वयं।
भाव में बहती नहीं है बेटियां।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य