Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2023 · 4 min read

*बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)*

बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
“अजी सुनते हो ! मैंने चाय के लिए पानी रख दिया है । अब तुम दूध ,पत्ती ,चीनी डाल लेना ।”-यह श्रीमती जी की आवाज थी ।हमने कहा “क्यों ? अब कौन सा काम याद आ गया जो चाय अधूरा छोड़ कर चली गईं ?”
श्रीमती जी ने कहा “बस ,चाय बनाना ही शुरू किया था कि कविता की एक सुंदर-सी लाइन दिमाग में आ गई । अब उसी को बैठ कर पूरा कर रही हूँ।”
अब आप समझ ही गए होंगे कि श्रीमती जी रसोई से हटकर अपने कविता-कक्ष में चली गई हैं और जब तक उनके दिमाग में बिजली की तरह कौंध गई कविता की एक पंक्ति संपूर्ण कविता का आकार नहीं ले लेगी ,वह रसोई में नहीं आ सकतीं। सारा खामियाजा हमें ही भुगतना था । कहां तो हम सोच रहे थे कि आराम से कुर्सी पर बैठकर मेज पर टांग फैला कर एक कप चाय पिएंगे और कहां अब चाय भी खुद बनानी पड़ रही है और श्रीमती जी को भी उनके कविता-कक्ष में जाकर एक कप चाय देनी पड़ेगी । चाय पीने का सारा मजा ही किरकिरा हो गया ।
बंधुओं ! कवयित्री के पति को किस प्रकार से झेलना पड़ता है ,यह कोई भुक्तभोगी ही जानता है । सौ में किसी एक-आध घर में इस तरह की समस्या आती है। मगर जब यह समस्या पैदा हो जाती है तो बड़ी गंभीर होती है । हम तो रोजाना भगवान से प्रार्थना करते हैं कि श्रीमती जी को कम से कम खाना बनाते समय कविता लिखने की प्रेरणा प्राप्त न हो जाए अन्यथा हमारा वह दिन उपवास में ही बीतेगा ।
एक दिन तो बर्तन मांजते – मांजते उन्हें जूठे बर्तनों में भी काव्य-रचना की प्रेरणा मिल गई । तवा ,कुकर ,थाली ,कटोरी सब आधे मँजे पड़े थे लेकिन श्रीमती जी को जब काव्य चेतना जागी तब वह सब कुछ छोड़ कर पुनः अपने कविता-कक्ष में चली गईं। वहीं से हमें आदेश मिला “अब कविता की प्रेरणा जाग उठी है । बाकी सब काम तुम कर लो ।” परिणामतः श्रीमती जी ने अपनी कविता बनाई और हमने बर्तन मांजे।
कई बार हमारी सोते-सोते नींद खुल जाती है तो पता चलता है कि श्रीमती जी बिस्तर पर नहीं हैं। बगल में कुर्सी पर बैठी हैं, हाथ में डायरी है और कविता लिख रही हैं। हम आश्चर्यचकित होकर पूछते हैं ” यह रात में ढाई बजे बिस्तर से उठ कर कविता लिखने की क्या तुक है ? ”
श्रीमती जी मुस्कुराते हुए जवाब देती हैं ” कविता में तुक नहीं होती । जब भी मन में विचार जाग उठते हैं ,तब कविता बनने लगती है और उसी समय उसे डायरी पर उतारने का नियम होता है ।”
“सुबह उठकर भी तो तुम इस कविता को लिख सकती थीं ?”
श्रीमती जी मुस्कुराते हुए जवाब देती हैं ” तुम कविता की पेचीदगियों को नहीं समझोगे । काव्य चेतना का स्फुरण जिस क्षण होता है ,उसी क्षण उसे लिपिबद्ध कर दिया जाए तब वह अमर हो जाता है अन्यथा नाशवान पानी के बुलबुले के समान दस-बीस मिनट में विनाश को प्राप्त हो जाता है।”
हमारी समझ में रात के ढाई बजे वाली यह काव्य-चेतना कभी पल्ले नहीं पड़ी । हमारी आंखों में नींद भरी होती थी । हम कहते थे ” तुम्हारी काव्य-चेतना तुम्हें मुबारक ! हम तो घोड़े बेच कर सो रहे हैं ।”- और हम सचमुच चादर तान कर सो जाते थे।
पत्नी कवयित्री हो ,तो हर समय घर का माहौल काव्य-रचना का बना रहता है । एक दिन श्रीमती जी ने सूचित किया कि उनको काव्य-पाठ के लिए आमंत्रित किया गया है। हमने पूछा “कहां से बुलावा आया है ? ” उन्होंने किसी शहर का नाम लिया । हमने कहा “वह तो बहुत दूर है । जाने में एक घंटा लग जाएगा । टैक्सी का आने-जाने का खर्च भी महंगा बैठेगा । कितने रुपए आयोजक तुम्हें दे रहे हैं ? ”
वह झुँझलाकर कहने लगीं ” तुम्हें रुपयों की पड़ी है । वह तो हमारी जान-पहचान निकल आई । अतः कवि सम्मेलन में काव्य पाठ के लिए बहन जी ने हमें जुगाड़ कर के आमंत्रित कर लिया । आज हमारी शुरुआत कवि सम्मेलन के मंच पर हो रही है । अगर टैक्सी से आना-जाना भी पड़ जाए तो तुम्हें खर्च करने में पीछे नहीं हटना चाहिए । आखिर सभी लोग अपनी पत्नियों के लिए कुछ न कुछ करते ही हैं ।”
मरता क्या न करता ! हमने महंगे दामों पर टैक्सी की । दफ्तर से छुट्टी ली । पत्नी के अंगरक्षक तथा सहायक के रूप में कवि सम्मेलन में उनके साथ-साथ रहे। श्रीमती जी ने कवि सम्मेलन में एक कविता पढ़ी । मंच पर पढ़ते समय काँप रही थीं, लेकिन बाद में कहा “अब जीवन में धीरे-धीरे आगे बढ़ने का समय आ गया है ।”
हम समझ गए कि अब हमें थोड़े-थोड़े दिनों बाद दफ्तर से छुट्टियां लेनी पड़ेंगी और गृह-कार्य में दक्ष होना पड़ेगा । आखिर श्रीमती जी कवयित्री जो बन गई हैं ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

998 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
"अदृश्य शक्ति"
Ekta chitrangini
आज 31 दिसंबर 2023 साल का अंतिम दिन है।ढूंढ रहा हूं खुद को कि
आज 31 दिसंबर 2023 साल का अंतिम दिन है।ढूंढ रहा हूं खुद को कि
पूर्वार्थ
सागर से अथाह और बेपनाह
सागर से अथाह और बेपनाह
VINOD CHAUHAN
व्यक्ति की सबसे बड़ी भक्ति और शक्ति यही होनी चाहिए कि वह खुद
व्यक्ति की सबसे बड़ी भक्ति और शक्ति यही होनी चाहिए कि वह खुद
Rj Anand Prajapati
आप हमें याद आ गएँ नई ग़ज़ल लेखक विनीत सिंह शायर
आप हमें याद आ गएँ नई ग़ज़ल लेखक विनीत सिंह शायर
Vinit kumar
हमेशा गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है
हमेशा गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है
शेखर सिंह
हे मन
हे मन
goutam shaw
बगिया* का पेड़ और भिखारिन बुढ़िया / MUSAFIR BAITHA
बगिया* का पेड़ और भिखारिन बुढ़िया / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
लड़को की योग्यता पर सवाल क्यो
लड़को की योग्यता पर सवाल क्यो
भरत कुमार सोलंकी
मिष्ठी का प्यारा आम
मिष्ठी का प्यारा आम
Manu Vashistha
*दादी की बहादुरी(कहानी)*
*दादी की बहादुरी(कहानी)*
Dushyant Kumar
फौजी की पत्नी
फौजी की पत्नी
लक्ष्मी सिंह
बुंदेली दोहे- कीचर (कीचड़)
बुंदेली दोहे- कीचर (कीचड़)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
रूठकर के खुदसे
रूठकर के खुदसे
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
#पर्व_का_संदेश-
#पर्व_का_संदेश-
*प्रणय प्रभात*
गांव की याद
गांव की याद
Punam Pande
रामेश्वरम लिंग स्थापना।
रामेश्वरम लिंग स्थापना।
Acharya Rama Nand Mandal
वो जो ख़ामोश
वो जो ख़ामोश
Dr fauzia Naseem shad
सौ बरस की जिंदगी.....
सौ बरस की जिंदगी.....
Harminder Kaur
आग लगाते लोग
आग लगाते लोग
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते...
कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते...
मनोज कर्ण
विरह वेदना फूल तितली
विरह वेदना फूल तितली
SATPAL CHAUHAN
मन से हरो दर्प औ अभिमान
मन से हरो दर्प औ अभिमान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
जो तेरे दिल पर लिखा है एक पल में बता सकती हूं ।
जो तेरे दिल पर लिखा है एक पल में बता सकती हूं ।
Phool gufran
*करिए जीवन में सदा, प्रतिदिन पावन योग (कुंडलिया)*
*करिए जीवन में सदा, प्रतिदिन पावन योग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
हमेशा भरा रहे खुशियों से मन
हमेशा भरा रहे खुशियों से मन
कवि दीपक बवेजा
"डिब्बा बन्द"
Dr. Kishan tandon kranti
2912.*पूर्णिका*
2912.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तमाम उम्र जमीर ने झुकने नहीं दिया,
तमाम उम्र जमीर ने झुकने नहीं दिया,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
Loading...