#बाल_दिवस_से_क्या_होगा?
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#आज_का_सवाल-
■ बाल दिवस से क्या होगा?
【प्रणय प्रभात】
365 दिनों में एक दिवस मनाने से नहीं, हमेशा के लिए सोच बदलने से बचेगा बचपन। निरीह मासूमों पर न थोपें अपनी भारी-भरकम महत्वाकांक्षाएं। उनके कच्चे और कमज़ोर कंधों पर न लादें कमीशनखोरी के लिए भारी बस्ते। मासूम जिस्मों पर न पड़ने दें दरिंदों की गिद्ध-दृष्टि।
करें संकल्प, सोचें विकल्प बाल संरक्षण के। साथ ही स्वीकारें यह सच, कि बाल-अपराध से बुरा नहीं है बाल-श्रम। कम से कम उस देश में, जहां हादसों और वारदातों के बाद मुआवज़े का विधान तो है, बेहतर परवरिश के लिए मदद का प्रावधान नहीं।
विशेष कर उस विकासशील देश में जहां 80 करोड़ आबादी आज भी सरकारी टुकड़ों पर निर्भर है। उस देश में जहां बचपन पहले घर में पिटता है, फिर बाहर। जी हां, वही बचपन जो किशोर अवस्था तक पहुंचने के बाद अकाल मौत का वरण कर लेता है उच्च शिक्षा के लिए गला-काट स्पर्द्धा के दौर में। वही बचपन, जो तरुणाई में आत्मघाती क़दम उठाने पर विवश होता है, एक अदद नौकरी न मिल पाने से हताश हो कर। पेपर-लीक, परीक्षा-निरस्ती, पद और अवसरों की नीलामी, चैक एंड जैक सिस्टम, भाई-भतीजावाद और आर्थिक दयनीयता जैसे अभिशापों के मकड़जाल में घिरने व छटपटाने के बाद।
क्या लिखूं और कितना? न कोई पढ़ने वाला, न कोई सुनने वाला। ऐसे में बस एक ही सवाल। रोज़ नए बवाल वाले मुल्क़ में काहे का बाल-दिवस और किसके लिए…?
■ प्रणय प्रभात ■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)