प्रेम को भला कौन समझ पाया है
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प्रेम बेहद क्लिष्ट है
जिसने समझा
वो कर ना पाया
जिसने किया
उसको समझ ना आया ,
अब कृष्ण नहीं है
कोई भी इस जहां में
कि तुममें मैं मुझमें तुम
इस मंत्र को फूंक कर
ख़ूब प्रेम कमाया ,
ये प्रेम बहुत गूढ़ है
पोथियों से नहीं
अंतरात्मा से है आया
अच्छे अच्छों को नचा दिया इसने
प्रेम को भला कौन समझ पाया ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )