प्रदीप छंद और विधाएं

#प्रदीप_छंद (एक चरण चौपाई +दोहे का विषम चरण )
16,13 पर यति कुल 29 मात्राएं. (यह मात्रिक छंद है )
विशेष निवेदन ~चौपाई चरण का पदांत चौपाई विधान से ही करें ,
एवं दोहे के चरण का पदांत दोहा विधान से ही करें ) चौपाई के चरण में 16 मात्रा गिनाकर पदांत. रगण ( 212 ) जगण 121 , तगण 221से वर्जित है ।
यह गेय छंद है , इससे –
मूल छंद –
मुक्तक ,
गीतिका ,
गीत ,
पद काव्य
लांँगुरिया गीत
लिखे जा सकते हैं।
सोलह -तेरह मात्राओं का , न्यारा छंद प्रदीप है |
चार. चरण का प्यारा जानो , रखना बात समीप है |
विषम चरण है चौपाई सा , सम दोहा का है प्रथम ~
है सुभाष लय इसमें पूरी, विज्ञ जनों की टीप है |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विषय- मित्र (चार चरण के दो युग्म में )
मित्र सदा मिलता रहता है , भाई खोजे यार में |
सुख दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में ||
करे सामना आलोचक से , कमी नहीं तकरार में |
सदा मित्र को अच्छा मानें , अपने नेक विचार में ||
(अब यही युग्म मुक्तक में )
मित्र सदा मिलता रहता है , भाई खोजे यार में |
सुख दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में |
करे सामना आलोचक से , तर्कों के आधार पर –
सदा मित्र को अच्छा मानें , अपने नेक विचार में |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पुन: दो युग्म
मित्र इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |
हाथ मानिए भाई जैसा , अपने घर परिवार में ||
मिले सूचना यदि संकट की , मित्र कृष्ण अवतार में |
आकर हल करने लगता है , लग जाता उपचार में ||
(अब यही युग्म मुक्तक में )
मित्र इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |
हाथ मानिए भाई जैसा , अपने घर परिवार में |
मिले सूचना यदि संकट की , आए कृष्णा भेष में ~
बिना कहें हल करने लगता , लग जाता उपचार में |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब यही युग्म अपदांत गीतिका में ….
मित्र सदा मिलता रहता है , भाई खोजें यार में ,
सुख-दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में |
करे सामना आलोचक से , तर्को के आधार पर ,
सदा मित्र को अच्छा मानें , अपने नेक विचार में |
कभी मित्रता हो जाती है , मन से उपजी बात में ,
कृष्ण- सुदामा सुनी कहानी , दादी के सुखसार में |
सदा मित्र का साथ निभाओं , हितकारी आधार पर,
रखो बाँधकर भाई जैसा , अपने दिल के तार में |
आसमान से ऊँची दुनिया , सदा मित्र की देखिए |
मिलते ही मन खिल जाता है , सुख आता दीदार में ||
मित्र खबर पर दौड़ा आता , कृष्णा के परिवेश में |
भरी सभा में लाज बचाता , लग जाता उपचार में ||
===============================
अब इन्हीं सभी युग्मों से गीत तैयार है….
मित्र सदा मिलता रहता है , भाई खोजे यार में | (मुखड़ा)
सुख दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)
मित्र इत्र सा जिसको मिलता , खुश जानो संसार में |(अंतरा)
हाथ मानिए भाई जैसा , अपने घर परिवार में ||
मिले सूचना यदि संकट की , मित्र कृष्ण अवतार में |
आकर हल करने लगता है , लग जाता उपचार में ||
करे सामना आलोचक से , कमी नहीं तकरार में |(पूरक)
सुख दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)
कभी मित्रता हो जाती है , मन से उपजे प्यार में |(अंतरा)
कृष्ण- सुदामा सुनी कहानी , हमने घर परिवार में |
सदा मित्र का साथ निभाओ , हितकारी आधार में |
रखो यार को भाई जैसा , अपने नेक विचार में ||
मिलते ही मन खिल जाता है , सुख आता दीदार में ||(पूरक)
सुख -दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)
आसमान से ऊँची दुनिया , देखी है संसार. में |(अंतरा)
भाई जैसा मित्र जहाँ है , दिल के जब दरवार में ||
सदा मित्र को रहते देखा , अपने मन आधार में |
एक जान मित्रों को कहते, दुनिया की रस धार में ||
सदा मित्र का साथ न छोड़ो, पड़ो न सुभाष खार में |(पूरक)
सुख -दुख में वह साथ निभाता, जुड़ा रहे परिवार में || (टेक)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रदीप छंद आधारित पद काव्य
मतलब का संसार है |
कपटी करता मीठी बातें , खूब दिखाता प्यार है ||
हित अनहित को नहीं विचारे , करे पीठ पर वार है |
कूट- कूटकर भरी हुई है, चालाकी दमदार है ||
भाव भरे हैं जिसमें घातक , रखता सबसे खार है |
कहे ” सुभाषा ” बचकर रहना , वर्ना हर. पग हार है ||
~~~~~~~
प्रदीप छंदाधारित लांँगुरिया गीत {पांँच अंतरा का)
(आप सबसे निवेदन हो ही चुका है कि लांँगुरिया लोक भाषा गीतों को खड़ी हिंदी में लाने का प्रयास है , टेक और -उड़ान को गायक बीच में कहीं से भी तोड़कर अलाप- क्षेपक के साथ आगे लय भर सकता है |
टेक- लांँगुरिया दीवान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री ~ 2
अंतरा~
सुनो सजनिया गोरी कहती , नहीं समझ नादान री |
लांँगुरिया अलबेला मेरा , उसे बहुत पहचान री ||
पूरक ~ लांँगुरिया का गान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री ~2
अंतरा~
लांँगुरिया से जब-जब मेरी , होती न्यारी बात री |
प्रेम रंग से खिल जाती है , मेरी पूरी रात री ||
पूरक ~ बतलाती मैं ज्ञान री |
उड़ान ~ उसका करती मान री || ~2
अंतरा ~
लांँगुरिया से बनते रहते , मेरे प्यारे छंद री |
हँसती रहती लांँगुरिया सँग , होंठों से मैं मंद री ||
पूरक~ लांँगुरिया है भान री |
उड़ान ~उसका करती मान री ~2
अंतरा
बातें उसकी मीठी लगती , खिल जाते है फूल री |
सुनकर शीतलता भी आती , मन. के झड़ते शूल री ||
पूरक ~ मधुरम उसका गान री |
उड़ान ~करती उसका मान री ~2
अंतरा
रहूँ देखती मैं लांँगुरिया , मन के बजते तार री |
सुनो सहेली हम दोनों में , अद्भुत रहता प्यार री ||
पूरक ~ लांँगुरिया ईमान री |
उड़ान ~करती उसका मान री ||~2
~~~~~~
प्रदीप छंदाधारित गीत
करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की |
दोहा चौपाई को लेकर , लेखन के उत्थान की ||
दोहा जिनको लिखना आता , सही मापनी जानते |
जो चौपाई की गति यति भी , विधि सम्मत ही मानते ||
सभी छंद को वह लिख सकते ,यह हमको अनुमान है |
लिखते देखा श्रेष्ठ गणों को , जिनकी अब पहचान है ||
दोहा के सँग रक्षा करते , चौपाई सम्मान. की |
करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की ||
जो अपनाकर अपवादों को , निजी सृजन को मोड़ते |
रगण जगण से यति चौपाई ,करके विधि को तोड़ते ||
सृजन भटकता देखा उनका , बनते खुद उपहास है |
मात् शारदे अनुकम्पा के , बनते कभी न खास. है ||
ध्यान कलन का जो रखते है , कलम वहाँ गुणगान की |
करें निवेदन मित्रों पहले, हिंदी छंद विधान की ||
सही तरह. से अठकल बनता , रहता छंद प्रवाह है |
दोहा लेखन सुगम बनाता , आगे दिखती राह. है ||
अठकल का चौपाई. में भी , योगदान बेजोड़ है |
हाथ जोड़कर कहे ‘सुभाषा’ ,समझा यही निचोड़ है ||
सदा सीख की चाहत रखता , पाना कृपा निधान की |
करें निवेदन मित्रों पहले , हिंदी छंद विधान की |
~~~~~~~~
प्रदीप छंद गीत
सोच जहाँ पर खो जाती है , रहे न मानव चाल. में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते , मदिरालय. के जाल में ||
चार चरण का दोहा होता , दो मिलते है मुफ्त. में |
काम सौपते तुकमुल्ला का , कहते रहिए. रफ्त में ||
आदत गंदी डाल रहे है , देकर भाव उधार में |
चरण खोजता कवि घूमेगा ,सुबह-शाम अखवार में ||
मिलें देखने क्या- क्या नाटक,स्वांग दिखे सब ताल में |
मुफ्त. पिलाकर आदी करते , मदिरालय के जाल. में ||
चरण. बाँटते चूरण जैसा , दानवीर सरदार. है |
क्रमशा: बाँट प्रशस्ति हँसते, ऐसे भी दरबार है ||
नहीं सोचना कवि को पड़ता , मिले दान में भाव है |
काम कीजिए तुक मुल्ला का , अच्छा भला चुनाव है ||
वर्ण. शंकरी सृजन. बनाते , लावारिश की ढाल में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते , मदिरालय के जाल. में ||
नहीं सोचना. पड़ता कवि को , रच जाता साहित्य है |
चरण मिले खैरात जहाँ पर, नहीं वहाँ लालित्य है ||
वाह- वाह जी अब क्या कहना , अच्छी पैदावार है |
पटल बनाकर ठेके पर अब , कवि करते तैयार है ||
होटल जैसे मंच बने है , तड़का देकर. दाल. में |
मुफ्त पिलाकर आदी करते, मदिरालय के जाल. में ||
~~~~~~
सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र जतारा(टीकमगढ)म०प्र०
============
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझाने का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर