प्रणय निवेदन
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सन्ध्या हो गई हे प्रणये, कुछ क्षण सामीप्य बना रहने दो ।
कहने को बहुत कुछ शेष बचा,रोको न हमें अब कहने दो।
जिस प्रेम की पाती पढ- पढ कर , जिज्ञासा बढ़ती जाती थी,
प्रणये बस कुछ ही क्षण,उस कर कमल को कर मे रहने दो ।
“सावर्ण्य”