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5 Jan 2023 · 6 min read

#पोस्टमार्टम-

#परत_दर_परत-
■ निधि के झूठ में छिपा है सारा सच
★ मामला हादसा नहीं कुछ और ही है
★ अनैतिक धंधा हो सकता है वजह
★ निधि की भूमिका बयानों जैसी संदिग्ध
【प्रणय प्रभात】
मीडया ट्रायल की भूल-भुलैया में फंसा अंजली की मौत का मामला हादसा नहीं है। समूची मानवता को दहलाने वाले इस वाक़ये के पीछे एक अलग वाक़या है। जिस पर मीडिया सहित कथित स्मार्ट व इंटेलीजेंट दिल्ली पुलिस का भी ध्यान नहीं है। पुलिस और मीडिया के बीच मामले को हादसा बनाम हत्या साबित करने की चल रही है। राजनैतिक दल संवेदनाओं को ताक में रखकर सियासी रोटियां सेंकने में लगें हैं। जिनके पास आरोप-प्रत्यारोप, आक्रमण और बचाव के सिवाय कुछ नहीं है। मामला इतना पेचीदा रहा नहीं है, जितना बनाया जा रहा है। मीडिया का मक़सद हमेशा की तरह संवेदना के नाम पर टाइम-पास करना व टीआरपी बटोरना है। पुलिस घटना के बाद मामले को हल्काने के चक्कर में दिए गए वक्तव्य में उलझने से बचने के लिए तिकड़म भिड़ा रही है। सियासत के लिए मामला एक सुलगता हुआ तंदूर है जबकि पीड़ित पक्ष की आस अब भरपाई के प्रयास पर टिक गई है। जिसका लाभ मदद के नाम पर मुआवज़ा देकर अपनी बला टालने में माहिर तंत्र उठा रहा है। जिसके साए में पलती शर्मनाक लापरवाहियां इस तरह के मामलों में लगातार बढोत्तरी का कारण हैं। इसी झूठे सियापे और दिखावे के बीच मामला नोएडा के बहुचर्चित “आरुषि-हेमराज हत्याकांड” की तरह दिशा से भटक रहा है। जबकि इस पूरे घटनाक्रम का “सच” सिर्फ़ और सिर्फ़ मज़लूम व मक़तूल अंजली की सहेली निधि के हरेक “झूठ” में छिपा हुआ है। जो सही पहलू को ध्यान में रखकर प्रोफेशनल तरीके से की जाने वाली सटीक विवेचना के बाद परत-दर-परत खुलकर सामने आ सकता है।
आंखों देखी हृदय-विदारक वारदात के बाद दो दिन भूमिगत रही निधि इस कथानक का अहम पात्र है। जो बड़े ही शातिर ढंग से झूठ पर झूठ परोस कर जांच को भटकाने की कोशिश कर रही है। अति भयावह और दर्दनाक मौत का शिकार बनी अंजली को नशे में चूर बताने वाली निधि ने पहले दिन से झूठ बोलने का जो सिलसिला शुरू किया है, वो अभी तक थमा नहीं है। बावजूद इसके वारदात में उसकी भूमिका को लेकर पुलिस या मीडिया उतना गंभीर नहीं है, जितना होना चाहिए। अंजली और निधि जिस प्रोफेशन में थीं, उसके लिहाज से इस मामले का सम्बंध उस अनैतिक कारोबार से भी हो सकता है, जो आज के दौर में आम है। इस धारणा को प्रबल बनाने का काम करता है दोनों का कार्य-क्षेत्र (होटल) और जश्न का दिन। जो किसी भी महानगर में शराब, क़बाब और शबाब के बिना अधूरा ही नहीं बैरंग और बेनूर भी माना जाता है। देश की राजधानी इस अप-संस्कृति की सबसे बड़ी और पुरानी संवाहक है। ऐसे में यह मामला दैहिक व्यापार के बेशर्म खेल से जुड़ा हुआ क्यों नहीं हो सकता? विचार इस सवाल पर भी होना चाहिए। मामला मृतका को गुमराह कर इस खेल में शामिल करने के प्रयास से जुड़ा भी निकल सकता है। जिसकी नाकामी इस वारदात की वजह बनी और ना-नुकर अंजली की मौत की वजह। जिसे आनन-फानन में एक हादसा बनाने का खेल रचा गया। इस आशंका को बल देने का काम जाने-अंजाने निधि की अनपढ़ मां एक चैनल के रिपोर्टर से बात करते हुए बेसाख़्ता कर गई। हैरत की बात यह है कि रिपोर्टर और चैनल उस एक पॉइंट को पकड़ ही नहीं पाया, जो सुर्खी में लाने के लायक़ है और जांच के चलते एक ट्रनिंग पॉइंट साबित हो सकता है।
निधि की मां ने निधि द्वारा सिनाई गई कहानी को हू-ब-हू दोहराते हुए दो बड़े खुलासे झोंक-झोंक में कर दिए। इनमें पहला तो यह कि उनके द्वारा मनमाने रंग-ढंग के कारण परिवार से बेदख़ल की जा चुकी निधि अलग रहती है। दूसरा यह कि अंजली की मौत का कारण बनी गाड़ी ने निधि को भी कुचलने ओर मारने की कोशिश की थी। गौरतलब बात यह है कि यह बात ख़ुद निधि ने पुलिस और मीडिया दोनों से छिपाई। ऐसे में हैरत इस बात पर क्यों नहीं की जानी चाहिए कि यदि कार में सवार पांच दरिंदे सुनसान सड़क पर एक युवती को मौत के घाट उतारने के बाद दूसरी को निपटाने में नाकाम कैसे और क्यों हो गए, जो उनकी करतूत की इकलौती गवाह थी? यह सवाल जांच को एक नया एंगल देते हुए पुलिस का मददगार बन सकता है। होटल से निकलने के बाद निधि का मोबाइल पूरी तरह डिस्चार्ज कैसे हुआ? उसके द्वारा बुलाए गए दो युवकों का क्या हुआ? उसे घर तक छोड़ने के प्रयास में सीसीटीव्ही की जद में आया अज्ञात शख़्स कौन था? निधि इस घटना के बाद अपने घर जाने के बजाय मां के घर क्यों गई, जहां से उसे निकाला जा चुका था? पड़ताल इन सारे सवालों की ज़रूरी है। ताकि हादसा ठहराई जा रही जघन्य वारदात की असलियत सामने आ सके।
जहां तक अपनी सहेली को अंजली के बजाय “लड़की” कह कर संबोधित करने वाली निधि का सवाल है। न उसकी भूमिका संदेह से परे है और ना ही उसके द्वारा दिए गए बयान। जो प्रथम-दृष्टया उसके झूठ की चुगली कर रहे हैं। ऐसे में कुछ बड़े सवाल हैं जो अहम होने के बाद भी न पुलिस के ज़हन में आ रहे हैं, न प्राइवेट डिटेक्टिव की भूमिका निभाने वाले रिपोटर्स की ज़ुबान पर। निधि द्वारा अपनी मां को दी गई जानकारी के मुताबिक गाड़ी के शीशे ब्लेक थे। जो अरसा पहले पूरी तरह से प्रतिबंधित हो चुके हैं। ऐसे में यदि निधि की बात सच मान ली जाए तो उससे यह भी पूछा जाना चाहिए कि काले शीश वाली कार में मौजूद लोगों की संख्या और नशे में धुत्त होने का पता उसे कैसे चला? हाड़ कंपा देने वाली कड़ाके की शीतलहर में यदि कार के शीशे बंद थे तो वह अंदर म्यूज़िक न बजने का दावा किस आधार पर कर रही है। बेहद ठंडे मौसम में ज़रा सी चोट असहनीय होती है। ऐसे में वो गाड़ी से ठुकी बाइक से गिरने और चोटिल होने के बाद भी इतनी जल्दी कैसे सक्रिय हो गई कि उस पर गाड़ी चढ़ाने का प्रयास विफल हो गया। चोट के बाद वो महज चंद मिनटों में दो-ढाई किमी दूर घर तक बिना किसी की मदद लिए कैसे पहुंच गई। गिरने, उठने और बचकर भागने की बेताबी के बीच वो कैसे यह देख सकी कि अंजली को गाड़ी ने किस तरह आगे-पीछे होकर कुचला? पूछना तो यह भी चाहिए कि इतनी भीषण त्रासदी को देखकर उसकी चीख क्यों नहीं निकली? दुर्भाग्य की बात है कि पुलिसिया जांच और मीडियाई ट्रायल से लेकर चैनली चकल्लस (डिबेट्स) तक में उक्त सवालों का वजूद नहीं है। क्या यह संभव नहीं हो सकता कि मृतका अंजली को अकारण नशे में चूर बताने वाली निधि उस रात ख़ुद नशे में टल्ली रही हो। जिसे जग-जाहिर न होने देने के लिए उसे 60 घण्टे गायब रहना पड़ा? इसका जवाब उसका पड़ौसी वो युवक और दोस्त भी दे सकता है, जो शायद उसका मोबाइल चार्ज करने के लिए ही रात को ढाई बजे घर के चबूतरे पर बैठा हुआ था। पता चला है कि एक परिचित युवक निधि के ड्रग-एडिक्ट होने का खुलासा भी कर चुका है। जो चार महीने पहले इसी आरोप में आगरा में पकड़ी गई थी। ताज-नगरी आगरा में पर्यटन व्यवसाय के साथ देह-व्यापार धड़ल्ले से चलता है। इस सच से सब बाकिफ़ हैं।
अपराध-शास्त्र के विद्यार्थो के रूप में यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि यह सारे सवाल, तर्क और तथ्य जांच का हिस्सा बनने ही चाहिए। ताकि वो असलियत सामने आ सके, जो पुलिस और सिस्टम के लिए “जी का जा जंजाल” और “जी/20 समिट” की कमान संभाल चुके देश के लिए बवाल का सबब बनी हुई है। चाहत बस इतनी सी है कि “दूसरी निर्भया” की रूह को इंसाफ़ मिले। पुलिस-प्रशासन की नाक बचे और सुलझ सकने वाला मामला “अनसोल्वड स्टोरी” की तरह “ब्लाइंड मिस्ट्री” बन कर न रह जाए। अपराधियों को त्वरित और समुचित दंड मिले तथा आम जन का क़ानून-व्यवस्था और न्याय के प्रति विश्वास क़ायम बना रह सके।
【संपादक/न्यूज़ & व्यूज़】

Language: Hindi
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