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17 May 2023 · 1 min read

पीताम्बरी आभा

पीताम्बरी आभा
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बादलों के रथ पे होकर सवार,
पीताम्बरी आभा का विस्तार,
मानों गगन के पट पर किसी ने,
उड़ेल डाली रंगो की बहार ।

पवन चक्कीयाँ लोरी सुनाती
अस्ताचलगामी भानु हर्षाती,
गगन पर चमक रहा प्रकाश बिंब,
मुखमंडल अंबर का जगमगाती।

आकाश का रंग हो रहा गहरा,
धरा पर बिखर रहा घना अँधेरा,
धरती गगन की ये मिलन की बेला,
विंहगम दृश्य संजोता हृदय चितेरा।

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