पलकों की
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पलकों की
कोर से टपकतेआँसू
मद्धिम पड़ती साँसे
उलझती डोर सी तेरी यादें
लफ्ज़ हो रहे
धुआं धुआं
तन्हाइयों में भी तन्हा होना
जज्बातों का
बर्फ़ सा सुन्न हो जाना
किस क़दर मुश्किल
होता है तुम बिन जीना
हिमांशु Kulshreshtha
पलकों की
कोर से टपकतेआँसू
मद्धिम पड़ती साँसे
उलझती डोर सी तेरी यादें
लफ्ज़ हो रहे
धुआं धुआं
तन्हाइयों में भी तन्हा होना
जज्बातों का
बर्फ़ सा सुन्न हो जाना
किस क़दर मुश्किल
होता है तुम बिन जीना
हिमांशु Kulshreshtha