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2 Feb 2017 · 2 min read

परिवर्तन

सड़कों पर,
तीव्र गति से भागती गाड़ियाँ,
आकाश में उड़ते हवाई जहाजें,
सागर में दौड़ते
बड़े-बड़े विशालकाय पोत
सिमटी हुई छोटी सी यह दुनिया
है भाग-दौड़ की भीड़ में लोप!
नित्य नए-नए सुख-सामग्री का
सृजन करता हुआ यह विज्ञान,
प्रतिपल दुनिया में परिवर्तन का
एक नया आयाम लिखता हुआ इंसान,
न जाने किस ऊँचाई पर
तीव्र वेग से चला जा रहा है!
कैसा है यह परिवर्तन?
बदलती हुई सभ्यता-संस्कृति,
बदलता हुआ यह परिवेश
बदलते हुए जीवन के बिंदु,
बदलता हुआ यह गाँव,
शहर और देश!

यह क्रांति ने मानव को सुखी,समृद्ध
और ताकतवर बना दिया है
किंतु दूसरी ओर उतना ही दुःखी,
गरीब और कमजोर भी!
आज मानव इस प्रगतिशील युग में,
दुनिया की विशाल भीड़ में
स्वयं को अकेला,असहज
और असुरक्षित अनुभव करता है!
प्रत्येक दिशा में वह एकांत खोजता है,
भीड़ से सदैव बचना चाहता है!

पहले मानव को भीड़ पसंद थी
लेकिन अब परिस्थितियाँ
विपरीत और प्रतिकूल हो गई
वह अकेला,एकांतवास रहना चाहता है
कैसी है यह क्रांति?
जो हमें दुनिया से अलग-थलग कर दे
अपनों से दूर कर दे,
भरी भीड़ में अकेला कर दे
स्वयं से ही पृथक और मजबूर कर दे
मानव को स्वार्थी,
आलसी और शैतान कर दे
मानवता से अपरिचित
और बेईमान कर दे
आत्मग्लानि से युक्त
निर्मम,नासमझ और नादान कर दे!

कैसी है यह प्रगति?
जो उचित मार्ग से
पथ भ्रष्ट कर दे
विनाश को आमंत्रित कर दे
मनुष्यता को संक्रमित कर दे
धरती को निर्वसन कर दे
आकाश को अभिशप्त कर दे
जल को दूषित कर दे
समस्त सृष्टि को क्षीण-भिन्न कर दे!
हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है
कि इस गौरवमयी परिवर्तन पर गर्व करें
या रोयें आत्मग्लानि से,
समझ में नहीं आता
कि यह समृद्धि की ओर
बढ़ता हुआ कदम है या विनाश की ओर!

Language: Hindi
Tag: कविता
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