पंखा
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/53ccd68d15b976b5c195988b1addd5c9_65ade3fa4f8cc5c964438f67afd2078f_600.jpg)
भोर काल से संध्या तक
चलता रहता है यह पंखा
दादी मा को भावे
मंद मंद चलता पंखा
आरव, आरवी यश यशी
और आश्विक का यह प्यारा पंखा
लड़ झगड़ कर सो जाते ये
ज़ब चलता रहता इनको पंखा
अम्मा बाबू को नींद ना आवे
ज़ब ना डोळे धीरे धीरे पंखा
ज़ब चली जाये विद्युत घर की
सब ले आवे अपना हथपंखा
अब ना करो शोर कोई
चला के सो जाओ सब पंखा