न ठंड ठिठुरन, खेत न झबरा,
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न ठंड ठिठुरन, खेत न झबरा,
न फसल न कंबल, कैसी पूस की रात है। वो जानवरों का चरना, झबरा का भौंकना, वाह प्रेमचंद जी आपकी क्या बात ।।
न ठंड ठिठुरन, खेत न झबरा,
न फसल न कंबल, कैसी पूस की रात है। वो जानवरों का चरना, झबरा का भौंकना, वाह प्रेमचंद जी आपकी क्या बात ।।