नादान पक्षी
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शीर्षक -नादान पक्षी
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यह तो निःस्वार्थ पक्षी नादान हैं।
हम मानव तो स्वार्थ भाव रखते हैं।
मोह-माया आकर्षण रिश्ते नाते रहते हैं।
ईश्वर ने जन्म नाम जपने को भेजा हैं।
हम संसार के भवसागर में उलझे हैं।
गीता रामायण हम जीवन में मानते हैं
पशु पक्षियों को दाना और चारा खिलाते हैं।
इश्क मोहब्बत और प्रेम प्राकृतिक रूप होते हैं।
हम मानव मन और दिमाग से मतलब रखते हैं।
सच तो बस हम सभी स्वार्थ फरेब रखते हैं।
सच तो चिड़िया चिरौटें का प्रेम निःस्वार्थ जीवन भर साथ कौन निभाता हैं।
सच और हकीकत का जीवन तो यही रहता हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र