धूम भी मच सकती है
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धूम भी मंच सकती है,
क्योंकि जोश मुझमें भी जागा है,
और आजाद तू भी हुई है,
आग तुझमें भी लगी है,
चिंगारी मेरे सीने में भी है,
चोट तुझको भी लगी है,
जख्म मेरा भी हरा है।
धूम भी मच सकती है,
रफ्त ऊंची भी हो सकती है,
क्योंकि नाक तेरी भी ऊंची है,
सिर मेरा भी उन्नत है,
पवित्रता तुझमें भी नहीं है,
निर्दोष मैं भी नहीं हूँ,
क्या कहूँ तुमसे मैं,
कायनात बदल भी सकती है।
धूम भी मच सकती है,
और अब मैं चाहता हूँ,
कि बर्बादी अपनी नहीं करुँ,
तेरे लिए अपना खून नहीं बहाऊँ,
बताऊंगा अब तो मैं,
तुम्हारे आँसू और खून,
मुझको मेरे सवालों का जवाब चाहिए,
इसलिए धूम भी मच सकती है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)