धर्म की खिचड़ी
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धर्म की खिचड़ी
सुबह-सुबह
पड़ती है कानों में
गुरद्वारे से आती
गुरबाणी की आवाज
तभी हो जाती है शुरु
मंदिर की आरती
दूसरी ओर से
आती हैं आवाजें
अजानों की
नहीं समझ पाता
किस से
मिल रही है
क्या शिक्षा
सब आवाजें मिलकर
बना डालती हैं
धर्म की खिचड़ी।
-विनोद सिल्ला©