दोहे
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दोहे
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नहीं मानते बात जो , कैसे हों वे पास।
पुस्तक पढ़ते हैं नहीं,नित्य करें बकवास।।
कर्म धर्म की जो सदा,नहीं मानते बात।
उनसे दूरी है भली , करते जो उत्पात।।
छुपकर करते घात जो , नहीं मानते बात।
पहले समझा दीजिए,तब फिर ठोंके लात।।
अपने मन की जो करें, नहीं मानते बात।
आखिर में वे मानते,खाकर ठोकर लात।।
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अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा