#दोहे

क्षुधा लिए मंज़िल मिले, समझो मत अभिशाप।
कमल खिले ज्यों पंक में, खिलो जीत यूँ आप।।
तड़प लगी प्रभु प्रेम में, भुला रही संसार।
दीवाना ऐसा हुआ, बदला मन व्यवहार।।
संयम मन पर जो करे, पाकर सच्चा ज्ञान।
हर चाहत वह जीत ले, होकर रहे सुजान।।
भ्रम मिटता सद्ज्ञान से, जानो लेकर ज्ञान।
भ्रमित मनुज भटके सदा, बना फिरे अनजान।।
अनगढ़ को जो गढ़ सके, कलाकार वह एक।
जिसकी छाया के तले, फूलें फलें अनेक।।
गदगद मन करते सदा, सत्य वचन अनमोल।
सोच समझकर बोलिये, हृदय स्वयं का खोल।।
प्यार तुम्हारा तो लगे, मानो हो मकरंद।
नश-नश में ज़ादू भरे, बन कविता का छंद।।
अर्थी अंतर से जगे, जीते सभी जहान।
हार-हार कर हार हो, बिखरे जब मुस्क़ान।।
भेज बुलावा प्रेम से, मिलें लिए अनुराग।
प्रेम शक्ति के दीप से, विष तम जाए भाग।।
सबसे हटकर सोचिये, लक्ष्य लिए परवाज़।
ध्यान सभी का खींचता, एक ज़ुदा अंदाज़।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे