देते फल हैं सर्वदा , जग में संचित कर्म (कुंडलिया)
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/74eded8a3393bd4b18c484a4f0d8bcbe_1dcd24bd54e56f8cd3e562083d4b2b4d_600.jpg)
देते फल हैं सर्वदा , जग में संचित कर्म (कुंडलिया)
—————————————————-
देते फल हैं सर्वदा , जग में संचित कर्म
अच्छा या मिलता बुरा ,उसका यह ही मर्म
उसका यह ही मर्म ,कर्म से कब बच पाता
पीछा करता कर्म , दूर तक दौड़ा आता
कहते रवि कविराय , हमेशा वापस लेते
मिलता वह ही लौट ,प्रकृति को जो हम देते
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
संचित = इकट्ठा या जमा किया हुआ
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451