दुनिया एक मेला है

सुना है हमने दुनिया एक मेला है
तो हर आदमी दिखता क्यों अकेला है
भला कैसे ये दुनिया एक मेला है
सुना है हमने……………………..
लोग भीड़ में भी अकेले नजर आते हैं
तो फिर क्यों ये महफिलें सजाते हैं
सुना है हमने……………………..
हर तरफ प्यार मोहब्बत का फ़साना है
फिर भी हर शख्स क्यों दिवाना है
सुना है हमने……………………..
यह तेरा,यह मेरा,यह उसका हमसफर है
फिर भी कैसे अकेला रहगुजर है
सुना है हमने…………..………….
मिल बैठकर यूँ तो सभी ठहाके लगाते है
मगर चेहरे क्यों उड़े नजर आते हैं
सुना है हमने……………………..
‘विनोद’ खुदा ने दुनिया अजब बनाई है
लगे हैं मेले न जाने कैसी तन्हाई है
सुना है हमने……………………..
स्वरचित
( विनोद चौहान )