दीप बनकर जलो तुम
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* गीतिका *
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तमस है घना दीप बनकर जलो तुम।
कभी मत रुको राह चलते चलो तुम।
कभी आंख में आ गये अश्रु गम के।
कहो शीघ्र उनसे खुशी में ढलो तुम।
बहारें कभी आपसे रूठ जाएं।
चलो पतझडों में ही फूलो फलो तुम।
हमेशा दिलों में बनाई जगह जब।
नहीं अब किसी भी नजर में खलो तुम।
तजो दंभ आगे हमेशा रहो अब।
कभी सख्त वातावरण में पलो तुम।
बहो अश्रु बनकर मुहब्बत जगाओ।
हिमालय बनो हिमनदी सम गलो तुम।
लहर उठ रही सिंधु में खूब ऊंची।
विजय सामने दुश्मनों को दलो तुम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २३/०९/२०२२