दिल रंज का शिकार है और किस क़दर है आज
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दिल रंज का शिकार है और किस क़दर है आज
आहट जो धड़कनों की थी, ख़ामोशतर है आज
आंखों को तेरी बख़्शा है जिसने हया का जाम
साक़ी तिरी निगाह से क्यों बे – ख़बर है आज
सारे जहां को जिसने दिया दर्से – आगही
उस क़ौम पर ज़माने की क्यों बद-नज़र है आज
करता था रश्क जिसकी बुलंदी पे आसमान
कट कर गिरी पतंग वही फ़र्श पर है आज
वह शख़्स जो रक़ीब रहा उम्र भर मिरा
मैय्यत पे मेरी देखो वही नौहागर है आज
“आसी” जिसे ग़रूर था अपनी उड़ान पर
है वक़्त का यह मौजज़ा बे – बालो – पर है आज
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सरफ़राज़ अहमद आसी