दंगे के बाद
दंगे के बाद
ऐसे लड़ने झगड़ने और दबाव बनाने से भला कैसे देश का विकास होगा,,,,,,,
ये बात किसी दबंगी और दमनकारियों के समझ नही आ रही थी।।।।।।।
दंगे के बाद चारों और धुंआ ही धुंआ ऊपर उठ रहा था,,,,,,,,,,,,,
किसी के घर मातम की और रोने बिलखने की आवाजें आ रही थी।।।।।।।
दिल सहम गया मेरा ये लुटता हुआ देश का का मंजर देखकर,,,,,,,,,,
पर उत्पाद मचाने वालों को शर्म नही आ रही थी।।।।।
अरबो खरबों का नुकशान हुआ,महंगाई ने एक कदम और आगे रखा,,,,,,,,,
सरकार को भी ग़रीबो के ऊपर दया नही आ रही थी।।
आवागमन के साधनों को तोड़ कर जलाकर राख किया,,,,,
अपनी ही देश की संपत्ति को ये उपद्रवी भीड़ नुकशान पहुँचा रही थी।।।।
कहि तो हिन्दू ओ के भगवान राम और हनुमान का अपमान किया जा रहा था,,,,,,,,,,,,
ये जालिम और नागवारो वाली हरकतों से भीम सेना बाज नही आ रही थी।।।।
आंदोलन करना तो शांति प्रिय ढंग से करना चाहिए,,,,,
सरकार और कोर्ट पर खून खराबा कर दमनकारी लोग अपना दबाव बना रही थी।।।
अपनी माँगो को मगवाने की ख़ातिर इतना नीचे भी क्या गिरना,,,,,
असामाजिक तत्व भीम सेना की भीड़ में मिलकर अपने मंसूबो को अंजाम दे रही थी।।।।।।।।
दंगे के बाद भीम सेना दौड़ दौड़ का आ रही थी,,,,
किसी के मुँह से आह तो किसी के मुँह से उहाहाः निकल रही थी।।।।।।।।
बेवज़ह चारों और दंगे उत्पाद मचाये सभी ने मिलकर,,,,,,,
गरीबों के झोंपड़े और बसे धधकते जली जा रही थी।।।।।।।।।
न जाने कितने नारों के गुंजाय मान आसमाँ के नीचे हो रहे थे,,,,,,,,
पुलिसबल भी अपना भीड़ पर ताबड़तोड़ दबाव बना रही थी।।।।।।।।।
सोनू तो बस यही कर रही है आपस मे मिलकर रहो भाई भाई बनकर,,,,,,,,
देश के बहार दुश्मन बैठ मेरे देश तोड़ने की सडयंत्र नीति वर्षो से बना रही थी।।।।।।।।
इन दुश्मनों के मंसूबो को तुम आपस मे लड़कर साकार करने का मौका न दो,,,,,,,,,,
अपनी मातृभूमि की रक्षा का आभास तुम्हें क्यों नही हो रही थी।।।।।।।।
दूश्मन देश इसी ताक पर तो बैठे है कि हम कब लड़े और ये उसका फयाद उठाएं,,,,,,,,,
क्या बर्षो के इन पाक और चीन की तुम्हें मंसा समझ नही आ रही थी।।।।।।।
रचनाकार- गायत्री सोनू जैन
सहायक अध्यापिका मंदसौर
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