तेरी दहलीज़ तक
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तेरी दहलीज तक ,प्यास ले आई हमें।
हर अब्र की फूटी किस्मत दिखलाई हमें।
नहीं बरसना था तो काली घटा क्यों छाई
ये ऐसी झूठी तसल्ली क्यो दिलाई हमें।
शिद्दत ए तिशनगी , कोई न मेरी समझा
सब्र करने की ही बात समझाई हमें।
वस्ल ए इंतजार में थक गई जब आंखें
मुद्दों तक फिर कभी नींद न आई हमें।
ऐ मोहसिन तुमसे गिला करें भी तो क्या
अपनी नाकामियां ही यहां तक ले आई हमें ।
सुरिंदर कौर