तुम जा चुकी
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और आख़िर में ये सत्य की
तुम जा चुकी हो
जब जेहन को कुरेदती है न तो ग़ज़ल नग्में कविता नहीं उग आते अपितु बहते है पस और रेहा रेहा कर उठता एक टिस
जो ना मरने देता है और ना जीने बस अपने आगोश में मुझे जकेर रखता है अंत हिन दर्द के लिए ।
और आख़िर में ये सत्य की
तुम जा चुकी हो
जब जेहन को कुरेदती है न तो ग़ज़ल नग्में कविता नहीं उग आते अपितु बहते है पस और रेहा रेहा कर उठता एक टिस
जो ना मरने देता है और ना जीने बस अपने आगोश में मुझे जकेर रखता है अंत हिन दर्द के लिए ।