तुमने देखा ही नहीं

तुमने देखा ही नहीं मेरी आंख की उदासी को।
नैन छलकते तो देखे,न देखा रूह प्यासी को।
कितनी रातें मैं जागी,कितनी रातें न सोयी मै
कभी न तू जान सका,तुम बिन कितना रोयी मैं।
दिल के दर्द न समझा तू, मैं भी रह गई मौन
था तू मीत मेरे मन का,तुम बिन समझे कौन।
छोड़ के जब जाना ही था,काहे रखी तूने प्रीत
बेवफाई करना तो , इश्क की नहीं है रीत।
सुरिंदर कौर