Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Jul 2023 · 4 min read

ठहराव सुकून है, कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

बांध देना कभी किसी तारे पर अपनी निगाह,
कभी चांद की रोशनी में होश से नहाना तुम।

रोक देना भागते हुए लम्हों को किसी पहर,
किसी रात महबूब से ख्यालों में बतियाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।
-मोनिका

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

उड़ा देना कभी धुएं के इक कश में गम तमाम,
कभी तन्हा बैठ जश्न ए ज़िंदगी को मनाना तुम।

करना सैर ज़माने की जब कभी मिले फुरसत,
फक़त दीया बुझने से पहले घर लौट जाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

सुनना जरा गौर से परिंदों की आवाज़ें भी कभी,
कभी बहती नदी के साथ – साथ गुनगुनाना तुम।

खोल देना सारे पंख मन के आंखें बंद करके कभी,
सारी सरहदों के पार अपनी इक दुनियां बनाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

कभी देखना आंखों के दायरे के बाहर का मंज़र भी,
कभी पढ़ना मौन को कभी ख़ुद भी मौन हो जाना तुम।

खोजना पत्थरों के बीच भी छुपा इन्सान किसी कोने में,
फकत उसकी झलक पाकर फिर मोम हो जाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

झांकना बूढ़ी आंखों के भीतर भी बैठकर पास कभी,
इक अनंत यात्रा की झलक पाकर हैरां हो जाना तुम।

मांगना तजुर्बे ज़िंदगी के कुछ पुरानी रूहों से अकसर,
फिर बैठकर बहुत सी जटिल पहेलियां सुलझाना तुम ।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

कभी आकाश भी देना अपने सपनों को हकीकत से परे,
भीड़ को जाने देना कभी कभी अपना साथ निभाना तुम।

तोड़ना कभी वो जंजीर भी जो रोक देना चाहती हो तुम्हें,
ज़िंदगी को जीना भी कभी, कभी इसे उत्सव बनाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

डूबने देना अपने आप को कभी गहरे सागर में ज़िंदगी के,
कभी इसकी लहरों पे काग़ज़ की कश्ती भी तैराना तुम।

देखना अपनी नज़र से भी अपना खुद का वुजूद कभी,
फिर उसके खिलाफ़ दुनियां की बात भी झुठलाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

खोल देना हर राज़ कभी कोरे काग़ज़ पर कलम से,
कभी किसी ग़ज़ल में हाल ए दिल बयां कर जाना तुम।

बुन देना कभी इश्क़ के पूरे सफ़र को चन्द लफ़्ज़ों में,
इक मतले में कभी कभी तमाम ज़िंदगी कह जाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

गुजरना उन रास्तों को भी जो अनजान हो अनकहे हो,
देख के मंजर परखकर खुशबू चाहे लौट भी आना तुम।

दो घूंट भी पी लेना मोहब्बत के नाम तो कभी गम के,
कभी बेहोशी की हद से गुजरकर भी होश को पाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

हवा दे देना उमड़ते सैलाब को भी जिस्म के भीतर कभी,
कभी भावनाओं की आंधी संग ख़ुद भी बह जाना तुम।

कभी तोड़ देना बांध भी, बंदिशे भी, हदें भी, सरहदें भी,
देखना कभी आईनें में और ख़ुद पे ही बहक जाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

पढ़ लेना कभी कभी कहकहों के पीछे की कराहटें,
कभी दर्द के बीच खुशी की लहर भी ढूंढ लाना तुम,

बैठ जाना कभी स्याह रातों में सितारों के साथ भी,
कभी अंधेरों में उतर कर रोशनी ख़ोज लाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

बख्श देना कभी कभी किसी के नाकाबिल गुनाह भी,
कभी वुजूद के दायरे से उठकर इक इंसां हो जाना तुम।
ठहराव सुकून है,

हो जाना खफा कभी कभी ख़ुद अपने भीतर के शख्स से,
कभी कभी बैठाकर अपने पास ख़ुद को ही मनाना तुम।

ठहराव सुकून है,
कभी कभी, थोड़ा ठहर जाना तुम।

मिले जब भी फुरसत तुम्हें
इस बेवजह दौड़ती ज़िंदगी से,
तकना शून्य को और मुस्कुराना तुम।

Language: Hindi
2 Likes · 358 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Monika Verma
View all
You may also like:
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
इतनी नाराज़ हूं तुमसे मैं अब
इतनी नाराज़ हूं तुमसे मैं अब
Dheerja Sharma
जाने कितने चढ़ गए, फाँसी माँ के लाल ।
जाने कितने चढ़ गए, फाँसी माँ के लाल ।
sushil sarna
यही एक काम बुरा, जिंदगी में हमने किया है
यही एक काम बुरा, जिंदगी में हमने किया है
gurudeenverma198
दुनिया कैसी है मैं अच्छे से जानता हूं
दुनिया कैसी है मैं अच्छे से जानता हूं
Ranjeet kumar patre
2511.पूर्णिका
2511.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*कलम जादू भरी जग में, चमत्कारी कहाती है (मुक्तक)*
*कलम जादू भरी जग में, चमत्कारी कहाती है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
"मोहब्बत"
Dr. Kishan tandon kranti
वो ख्वाबों में अब भी चमन ढूंढते हैं ।
वो ख्वाबों में अब भी चमन ढूंढते हैं ।
Phool gufran
25)”हिन्दी भाषा”
25)”हिन्दी भाषा”
Sapna Arora
नीला सफेद रंग सच और रहस्य का सहयोग हैं
नीला सफेद रंग सच और रहस्य का सहयोग हैं
Neeraj Agarwal
माॅ
माॅ
Santosh Shrivastava
छैल छबीली
छैल छबीली
Mahesh Tiwari 'Ayan'
आदि ब्रह्म है राम
आदि ब्रह्म है राम
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
शिव तेरा नाम
शिव तेरा नाम
Swami Ganganiya
व्यथा दिल की
व्यथा दिल की
Devesh Bharadwaj
किया आप Tea लवर हो?
किया आप Tea लवर हो?
Urmil Suman(श्री)
सफलता
सफलता
Paras Nath Jha
रोज रात जिन्दगी
रोज रात जिन्दगी
Ragini Kumari
स्त्री
स्त्री
Dinesh Kumar Gangwar
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
कवि रमेशराज
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
आकाश महेशपुरी
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
Shweta Soni
चुनाव का मौसम
चुनाव का मौसम
Dr. Pradeep Kumar Sharma
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
संजय कुमार संजू
यही हाल आपके शहर का भी होगा। यक़ीनन।।
यही हाल आपके शहर का भी होगा। यक़ीनन।।
*प्रणय प्रभात*
नफरतों के शहर में प्रीत लुटाते रहना।
नफरतों के शहर में प्रीत लुटाते रहना।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
।। परिधि में रहे......।।
।। परिधि में रहे......।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
काम चलता रहता निर्द्वंद्व
काम चलता रहता निर्द्वंद्व
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
इत्तिहाद
इत्तिहाद
Shyam Sundar Subramanian
Loading...