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9 Feb 2023 · 6 min read

टिकोरा

शार्दुल विक्रम सिंह ने मनसुख को बुलाया और बोले मनसुख जी इस बार मछली पालन ,मधुमख्खी एव मुर्गी पालन पर विशेष ध्यान देना है और इसके उत्पादन को बढाना है जिसका जिम्मा तुमको दिया जाता है ।

मनसुख एव राजा शार्दुल की वार्ता चल ही रही थी कि काव्या आ धमकी और बोली मनसुख जी इस बार तुम राइस मिल, ऑयल मिल के का उत्पादन दूना करते हुए बागवानी एव गन्ने के उत्पादन एव आय को दो गुना बढाने के लिए सारे प्रायास करेंगे जो भी सरकारी संस्थाओं के अधिकारियों से सुझाव या सहयोग लेना है उसके विषय मे अभी से रूप रेखा बनाते हुये अपने जिम्मेदारी के बेहतर निर्वहन के लिए त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करे।

मनसुख बोला जी मालिकिन जो आपने कहा हूबहू वही होगा शार्दुल विक्रम सिंह काव्या और मनसुख की बतकही सुन रहे थे बोले मनसुख तुम हमारी बात में भी हाँ में हाँ मिला रहे हो और काव्या की बात में भी हाँ में हां मिला रहे हो तुम तो
#थाली के बैगन #

हो गए हो थाली जिधर झुक रही है उधर ही लुढ़कते जा रहे हो अभी तुम मुझे मछली मुर्ग़ी एव मधुमख्खी पालन के विषय मे उत्पादन दूना करने के विषय मे आश्वस्त कर रहे थे और तुरंत काव्या कि तरफ बोलने लगे मनसुख बोला मलिक हम ठहरे नौकर ,नौकर चाहे सरकारी हो या व्यक्तिगत उंसे मौके की नजाकत समझना चाहिए उंसे जानाना चाहिए कि नौकरी में नव यानी झुक कर ही करना है और मलिक ई वक्त मौक़े का नजाकत ई है कि हम काव्या मेम साहब के साथ ही रहे आप तो कबो साथे ही रहबो अगर काव्या मेम खफा हो गयी त आप चाहीके भी हमे नाही रख सकतेंन ।

मालिक देखत नाही हौ महाराज सीता राम ,राधे कृष्णा ,लक्ष्मी नारायण सगरे भगवान से पहिले नारीशक्ति देवी लोगन के नाम आवत है देवता नाराज हो जाय तो चले देवी नाराज हो जाय त ना चले देवता अर्धनारीश्वर हो सकतेंन मगर देवी कबो अर्धपुरुषेश्वर नाही होतें कारण नारी शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है यही लिए मालिक हम काव्या मैडम के नाराज नाही कर सकतेंन चाहै आप
#थाली के बैगन #

कह चाहे चापलुस चाहे मेहरा हमार पहिला आस्था सेवा त काव्या मेम की साथे ही रही।
शार्दुल विक्रम सिंह को समझ मे आ गया कि मनसुख कि महिमा का कोई जबाब नही है।

उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा मनसुख जब चला गया तब राजा शार्दुल विक्रम सिंह ने कहा मैडम काव्या मनसुख से सतर्क ही रहिये इसका कोई भरोसा नही आपसे मजबूत डाल पकड़ कर आप आपके प्रति आस्था की तिलांजलि देने में मिनट भर इसे नही लगेगा मनसुख #थाली के बैगन #
से भी ज्यादा मौका परस्त है।

विश्ववेशर सिंह मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके अपने दादा राजा सर्वदमन सिंह के नाम से अस्पताल खोला शार्दुल विक्रम सिंह ने अपने पुराने आदमियों को विधेश्वर के साथ लगा रखा था जिसमे मनसुख एव रमन्ना भी थे विश्वेश्वर बहुत मिलनसार एव शौम्य मृदुभाषी एव विनम्र व्यक्ति थे जो भी उनसे एक बार इलाज या किसी भी सिलसिले में मिल लेता उनका ही होकर रह जाता बहुत कम समय मे ही डॉ विश्ववेशर की लोकप्रियता से अस्पताल ऐसा चल पड़ा जैसे कि वर्षो से चल रहा हो ।

डॉ विश्ववेशर के पास खाने तक की फुर्सत नही मिलती जवार का कोई भी मरीज उनके पास दुःख दर्द लेकर आता चाहे इलाज के लिए पैसा रहे या न रहे विश्वेश्वर उसका इलाज अवश्य करते और वह हंसात मुस्कुराता ही जाता।

एक दिन एक दुखियारी माँ अपने बीमार बेटे को लेकर डॉ विश्ववेशर सिंह के पास आई बोली बेटा हम बहुत गरीब है हमरे पास एकरे इलाज खातिर एको पैसा नाही बा इहे हमार आसरा है तोहार नाम बहुत सुने है बेटवा भगवान त हम देखे नाही है यही इच्छा लेकर आइल हई की शायद आपही हमरे खातिर भगवान बन जाए।

डॉ विश्ववेशर ने कहा माई हम भगवान नाही हई तोहरे बेटवा खातिर हमसे जो भी बन पाई करब जरूर।
माई ई बातव की तोहार बेटवा के ई हाल भइल कैसे जनमते ऐसे रहल की बाद में बुझिया बुध्धु की माई ने डॉक्टर विश्ववेशर सिंह को बताया कि बुधुआ जब दस बारिश के रहा तब अपने समहुरिया लरिकन के साथे आम के टिकोरा खातिर संघतीयन के चढ़ावे पेड़ पर चढ़ी गइल जब ई पेड़ पर चढ़ा तब एक बानर झट से एकरे पीछे वोही डारी पर आई गवा बुधुआ डरे नीचे गिरा धड़ाम एकर पैर टूट गवा हम लोगन पर बिना बुलाये आफत आई गइल ऐके लेके डॉक्टर की ईहा गईनी ऊंहा डॉक्टर साहब एकर ऑपरेशन कइलन फिर कुछ दिने बाद सीमेंट चड़ावलन छः महीना बाद पता चलल की बुधाधुँआपहिज होई गइल ।

डॉक्टर साहब कर्जा ऊआम लेके एकर इलाज त करौनी मेहनत मजदूरी कारीक़े भरत हई आपके बड़ा नाव सुनहले हई बुध्धु के बाबू कहेंन बुझिया तेहि जो डॉक्टर साहब के हाथ पैर जोर निहोरा कर शायद एक माई के फरियाद एक बेटवा खातिर दूसरे बेटवा सुन ले रानी साहिबा बहुत दयावान हइन उनकर बेटवा भी वैसे होई बुझिया की भावुक भाषा एव निवेदन से डॉ विश्ववेशर सिंह के दिल मे जोर जोर से आवाज़ देने लगा ।

डॉ विश्वेश्वर तुम्हे इस अबोध माँ की फरियाद सुननी चाहिए डॉ विश्ववेशर बोले देख माई एकर इलाज हम नाही करतिन लेकिन एकरे इलाज खातिर बाहर से डॉक्टर बोलवा के इलाज जरूर कराईब माई ते जो बुधुआ यही रही जब तक इलाज चली शाम को डॉ विश्ववेशर घर गए उन्होंने माँ काव्या और पिता शार्दुल विक्रम सिंह को बुझिया की व्यथा बताई और निवेदन किया कि भले ही विवाह से पहले बहू घर नही आती है जबकि मनीषा जिंदल तो अपना हक मांगने आ चूकी थी फिर भी मनीषा को बुध्धु के इलाज हेतु बुलाने हेतु प्रस्तव रखा काव्या एवं शार्दुल विक्रम सिंह को कोई आपत्ति नही थी वल्कि दोनों को मनीषा की बातों और व्यवहार ने इतना प्रभावित किया था कि वह मन से भी मनीषा को सदैव पास ही रखना चाहते थे।

विश्ववेशर ने तुरंत अपने ही मोबाइल से मनीषा को फोन किया मनिषा उधर से बोली डॉक्टर साहब इतनी जल्दी क्या है ?
शादी हो जाने दीजिये हम कही भागे थोड़े जा रहे है डॉ विश्ववेशर सिंह ने मनीषा को बुध्धु के बाबत जानकारी उपलब्ध कराई उसने कहा जनाब मैं एक घण्टे में फ्लाइट से आ रही हूँ।

दूसरे दिन बुझिया अपने बेटे से मिलने डॉ विश्ववेशर सिंह के नर्सिंग होम आई तो देखा कि एक मेम डॉ है लोंगो से जानकारी के बाद वह मनीषा के पास जाकर बोली बहुरिया जुग जुग जिये तोहार एहिवात गंगा जमुना की तरह बन रहे तू बिटिया आपन पैसा लगाके आइल हऊ हमरे बुधुआ के इलाज करें हम त अपने मन से आशीर्वाद के अलावा कुछो नाही देबे लायक बाटी मनीषा ने कहा माई कौनो बात नाही हमें तोहार आशीर्वाद ही चाही जौंन बहुत कीमती बा अब निश्चिन्त रह ईश्वर चाहियांन त सब अच्छा होई और मनीषा ने बुध्धु का इलाज शुरू किया ।

मनिषा न्यूरो सर्जन थी उसने बुध्धु का ऑपरेशन किया और तीन महीने में छः ऑपरेशन किया जो सफल रहा अपाहिज बुध्धु चलने फिरने के लायक हो गया और धीरे धीरे वह वैसा ही हो गया जैसा पेड़ से गिरने से पहले था ।बुध्धु के इलाज के दौरान मनीषा विश्ववेशर सिंह के घर मे लीड रोल में आ चुकी थी काव्या ने भी होने वाली बहु को परिवार की परम्परा एव जिम्मीदारियो को समझना और देना शुरु कर दिया था रमन्ना और मनसुख भी अधिक से अधिक समय विश्ववेशर को देते शार्दुल विक्रम सिंह काव्या एव विश्ववेशर मनीषा बैठे हुये थे मनसुख बात बात पर मनीषा की तारीफ की पुल बांध रहा था शार्दुल विक्रम सिंह ने परिहास के अंदाज़ में कहा देखा काव्या आपने मनसुख जी मनीषा की तारीफ कुछ अधिक नही कर रहे है ?
जबकि आधिकारिक रूप से मनीषा को अभी परिवार का सदस्य बनाना है मनसुख बोले महाराज अब आप लोगों ने भी अपना सारा कार्यभार मनीषा मेम साहब को सौंप दिया है तो हम लोग तो मजबूत डाल ही पकड़ेंगे राजा शार्दुल विक्रम सिंह बोले देखा काव्या जी मनसुख थाली के बैगन है जिधर पलड़ा भारी देखेंगे उधर चल पड़ेंगे सारा वातावरण हंसी के ठहाकों से गूंज उठा ।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।

Language: Hindi
105 Views
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