” झूंठा है , शर्माना तेरा ” !!
यों गुलाब की पँखुरी सी ,
तुम लगी गुलबिया !
चंचल नयना करे शिकायत ,
आओ ना रंगरसिया !
उपवन उपवन लग ना जाए –
अब अलियों का डेरा !!
मुस्कान जगी है अधरों पर ,
है कहीं शरारत मन में !
हैं कर्णफूल,गलहार चूमते ,
सजी कलाई कंगन से !
अलमस्त गन्ध गुंथी कुन्तल में –
गतिमान समय का फेरा !!
जो जहां खड़ा,वहीं है ठहरा ,
छवि लगे है न्यारी !
गुल शरमाये से लगते हैं ,
है शर्मायी फुलवारी !
हम तो खुद को बिसराये हैं –
है जगमग रूप घनेरा !!